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(. १९२) सत्यं वचो-नागर-खण्ड-बीटक .
सम्यक्त्व-पूर्ग शुभ-तत्त्व-चूर्णकं । .. स्वाध्याय-कर्पूर-सुगन्ध--पूरितं
तदस्तु मुख्यं शिव-सौख्य कारकम् ॥ देवि चतुरे ! मेरे ख्याल में सत्य वचन ही नागरपान का बीड़ा है। सचाई की उसमें सुपारी है। शुभ तत्त्व चिंतन का उसमें स्वादिष्ट मसाला है और जो स्वाध्याय कपूर से सुवासित है। वही मुख्य रूप से शिवसुख को करने वाला अन्तरंग पान बीड़ा है।
इस प्रकार काव्य गोष्ठी चलती हो थी उसमें वामांग कुमार और चतुराने चन्द्रकला से कहा आप 'श्रीचन्द्र' इस नाम का वर्णन कीजिये-कुमारी ने उन लोगों के अाग्रह से कहालक्ष्मी-केलिसरोऽट्टहासनिचयः काष्टावधू-दर्पणः श्यामावल्लिसुमं ख-सिन्धु-कुमुदं व्योमाब्धिफेनोद्गमः । तारागोकुल-शुक्ल-गौरति-गृहं छत्रं स्मर-क्ष्मापते - श्चन्द्रः श्रीसकालश्चिरं विजयतां ज्योत्स्ना सुधा-वापिका ॥
लक्ष्मी का क्रीडा सरोवर, हास्य का समूह, दिशा रुपी स्त्री के लिये मुख देखने का दर्पण रात्री रूप लता का पुष्प गगनसिन्धु का कुखद, भाकाश रूप समुद्र का झाग, तारा रूपी गोशाला की कामधेनु सफेद गाय, रति का घर,