________________
हे माग्यशाली ! जति मा जन्म से ही होती है ? नहीं २ गुणों से भी जाति का निर्माण होता है। इसी लिये शास्त्रों में गोत्र कर्म को परिवर्तन शील माना है। आप के गुण क्षत्रियों से किसी तरह भी कम नहीं है । राधावेध की साधना से आपने अपने आपको सर्वे श्रेष्ठ क्षत्रिय प्रसिद्ध किया है यह भूलने जैसी बात नहीं है। नैमित्तिकों ने जो संकेत किये थे वे सब आप में मौजूद हैं । ___ हे महानुभाव ! स्त्री हमेशा पति का अनुसरण करती है। ऐसा करने में ही उसकी खानदानी बखानी जाती है। इसके विपरीत आचरण से स्त्री उभय भ्रष्ट मानी जाती है । अतः सुसराल के व्यवहार को मानने में अपयश की कोई बात नज़र नर पाती न उससे हमें कोई दुःख ही होगा। ____हे विकेकी !- पुष्मनेटर से ही स्त्री-पल मुखी होते हैं न कि बडे-छोटे धरमै जाने से, अतः वैश्यघर और राजमहल में अधिक अंतर हमारी नजरों में नहीं आता।
हे चतुरशिरोमणि ! पद्मिनी चन्द्रकला ने आप को जो पति रूपमें चुना है यह अविचारी कार्य नहीं है। अविचारी कार्य संताप का कारण होता हे । सोच समझ कर किया हुआ काम सदा सुखदायक ही होता है।