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इस प्रकार उनमें परस्पर विनोद वार्तालाप हो रहा या कि अचानक उनके कानों में बाजों को आवाज सुनाई दी । चतुरंगिणी सेना मंत्रियों और सामंतों के साथ जय आदि राजकुमारों को नगर से बाहर जाते देखा । श्रीचन्द्रगुणचन्द्र से से पूछा कि मित्र ! कहो यह किस बात का जलूस है ? गुणचन्द्र को इस बात का पहिले से पता था अतः उसने मित्र के प्रश्नका उत्तर विस्तार पूर्वक देना प्रारंभ किया । वह बोला
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मित्र ! यहां से दक्षिण की ओर तिलकपुर नाम का एक नगर है। वहां तिलकसेन नाम का राजा राज्य करता है। उसके सुतिलका नाम की पटराणी है । उस महारानी के तिलकमंजरी नाम की कन्या है जो स्त्रियों की चौसठकलाओं में प्रवीण हैं । इस समय वह पूर्ण तरुण अवस्थामें होने से पाणिग्रहण के योग्य हो गई है। एक समय राज सभा में अपनी प्रतिज्ञा प्रकाशित की थी कि जो कोई वीर राधा - वेध करने में समर्थ होगा वही मेरा स्वामी होगा ।
राजा तिलकसेन ने उसे विवाह योग्य समझ कर स्वयंवर का शुभ मुहूर्त्त निश्चय कर लिया है। राधावेव के आचार्य की देख रेख में शास्त्र की विधि से राधावेध