________________
( १०२ )
इस पर कुमार ने बडे करुण स्वर में कहना शुरु किया पिताजी ! आपने जो बातें फरमाई, उनमें से एक भी कारण मेरी उदासी का नहीं है। मेरे हृदय में ज्ञान प्रकाश फैलानेवाले प्राचार्य मुझे छोड कर अपने देश की ओर प्रस्थान करने का कहते हैं। उनके वियोग-दुःख के विचार-मात्र से मैं दुःखी हूं। उनके बिना मुझे कौन नेक सलाह देंगे ? कौन मेरे संशयों को दूर करेगा ?
पिता पुत्र के बीच इस प्रकार का वार्तालाप हो ही रहा था, कि इतने में आचार्य भी वहां अपने घर जाने की अनुमति लेने आगये । उन्होंने कुमार को जब इस अवस्थामें देखा तो वे उसकी भक्ति, गर्वशून्यता, नम्रता आदि गुणों से प्रभावित हो उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे।
सेठ ने कलाचार्य का आदर करते हुए अपने शिष्य की हालत पर गौर फरमा कर कुछ समय तक ओर ठहरने के लिये प्रार्थना की । प्राचार्य ने भी प्रार्थना स्वीकार कर ली। यह देख श्रीचन्द्रकुमार का मन मन्दिर प्रसन्नता के प्रकाश से आलोकित हो गया ।
I
.