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( ६४ ) सब लोग सारिका के गुणों को याद करते हुए अपने २ स्थान पर चले गये। श्रीचन्द्र कुमार भी अपने पिता श्री लक्ष्मीदत्त सेठ के साथ चकोरों को प्रसन्न करने वाले चन्द्रमा के जैसे-अपने घर पर पहुँच कर अपने दिव्य गुणों से सब का मनोरंजन करने लगा।