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________________ धन्य-चरित्र/350 उसके चित्त को आप अपनी कला से प्रसन्न करें। अपरिमित धन का स्वामी है। ज्यादा क्या कहें? यह जंगम कल्पवृक्ष है।" उसने भी कहा-"ठीक है। उसे शीघ्र ही ले आओ।" __ प्रभात होने पर वे पुनः धर्मदत्त के समीप आये। विनय युक्त बातचीत के द्वारा कुमार के मन को प्रसन्न करके अवसर देखकर गत दिवस में की गयी बात का संकेत किया। कुमार ने कहा-"हाँ हाँ। चलते हैं।" तब सेवकों द्वारा शीघ्र ही रथ तैयार करके लाया गया। उस रथ पर जुआरियों के साथ सवार होकर अनेक सेवकों के द्वारा घिरे हुए नगर के आश्चर्यों को देखते हुए संगीतकार के घर कुमार पहुँचा। उसने भी अत्यन्त आदर व सत्कार-सम्मान करके घर के पिछवाड़े में रही हुई अत्यन्त रमणीय वाटिका में भव्य भद्रासन पर बिठाया। पुष्प-ताम्बूल आदि आगे रखकर परिकर-सहित उन्हें सम्मानित किया। फिर अनेक प्रकार के ताल, मान, लय को ग्रहण करने की मात्रा, मूर्च्छना आदि भेदों से भिन्न अनेक रसों व अलकारों से युक्त गीत गाने के लिए प्रवृत हुआ। कुमार भी भद्रासन पर बैठकर सुनने लगा। बीच-बीच में गीत, अलंकार नायक-नायिका के भेदों को, स्थायी सात्विक आदि रस की उत्पत्ति करनेवाले विभाव-अनुभाव आदि भेदों को प्रकट करके कहने लगा। कुमार से पूछने लगा। कुमार भी शास्त्र अभ्यास में होशियार होने से उसके स्वरूप को कहता है। तब संगीतकार उठकर प्रणाम करके प्रशंसा करता-"अहो! कुमार की बुद्धि-कुशलता।" इस प्रकार पुनः-पुनः चातुर्य का वर्णन करते हुए कुमार के मन को प्रसन्न किया। अतः कुमार कान देकर तन्यमता के साथ हर्षपूवक सुनने लगा। इस प्रकार दो प्रहर संगीतकार ने अपनी कला दिखायी। कुमार भी प्रसन्न हुआ। तब जुआरियों ने कुमार के कानों में कहा-"इसे कुछ भी दान देना उचित होगा।" कुमार ने कहा-"अच्छी बात है। दान तो सबसे पहले देना ही चाहिए।" तब जुआरियों ने श्रेष्ठी के घर से कुमार का नाम लेकर धन मँगवाकर कुमार के सामने रख दिया। कुमार ने चातुर्य-प्रिय और उदारता-युक्त होने के कारण सभी धन उसे अर्पित करके "फिर आऊँगा" यह कहकर उठ गया। फिर वाटिका को देखता हुआ घर आ गया। मार्ग में जुआरियों ने पूछा-स्वामी! यह आपको कैसा लगा?" कुमार ने कहा-संगीतकला में अत्यन्त निपुण है, हम फिर इसके पास जायेंगे।' फिर घर जाकर भोजनादि से निवृत्त होकर कुमार आस्थान मण्डल में जाकर बैठ गया। पुनः जुआरियों ने संगीत की बातचीत छेड़ दी। कुमार ने उसकी कला की फिर प्रशंसा की। तब जुआरियों ने कहा-"एक जवान श्रेष्ठ तरुणी है। वह भी संगीत नाटक आदि में श्रेष्ठतर है और देखने योग्य है।"
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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