________________
धन्य-चरित्र/320 उन्होंने कहा-“एक-एक का मूल्य सवा लाख स्वर्णमुद्रा है।"
वणिकों के मुख से इस प्रकार के मूल्य को सुनकर मन में विस्मित होते हुए राजा ने कहा-“हे विदेशियों! अत्यधिक मूल्यवाले इन कम्बलों को हम तो नहीं लेंगे, क्योंकि धारण किये हुए ये कम्बल ग्वालों के वेश की शोभा को बढ़ाते हैं। उत्तम जाति के मनुष्यों के लिए कम्बल का वेश शोभा नहीं देता। गुणों को तो जो जानता है, वही जानता है, पर इसको धारण करने पर तो सभी लोग तुच्छ जाति के ही मानेंगे। अतः हमें इन्हें ग्रहण नहीं करना है और भी करोड़ों स्वर्ण के द्वारा गृहित हाथी, घोड़े, मनुष्य व रत्नों के संग्रह युद्ध में विजय प्राप्त कराते हैं और राज्य की रक्षा भी करते हैं। पर कम्बल में तो क्या सामर्थ्य होती है? कुछ भी नहीं।"
राजा के इस प्रकार के वचनों को सुनकर व्यापार में कुशल वे व्यापारी उदास व निराश मुखवाले होकर राजा को नमन करके वहाँ से उठकर अपने रहने के स्थान पर जाने लगे, जाते हुए परस्पर व्यापार की बातें करते हुए शालिभद्र के महल के नीच से निकले। वे आपस में कहने लगे-"भाइयों! यदि इस प्रकार के महानगर में भी हमारे माल का विक्रय नहीं हुआ, तो इससे बढ़कर दूसरा कौन-सा नगर है, जहाँ ये रत्न कम्बल बेचे जा सकेंगे? महाराजाधिराज श्रेणिक भी अगर इन्हें खरीदने में असमर्थ हैं, तो इस देश में इन्हें कौन खरीद सकता है?" इस प्रकार बोलते हुए वे वहाँ से गुजर रहे थे।
इस समय शालिभद्र की माता भद्रा दासियों के समूह से घिरी हुई झरोखे में बैठी हुई नगर के दृश्यों का अवलोकन कर रही थीं। उन व्यापारियों के वार्तालाप को सुनकर भद्रा माता ने दासी को कहा-"शीघ्र ही जाओ। जो ये परदेशी व्यापारी जा रहे हैं, उन्हें शीघ्र ही बुलाओ।"
माता भद्रा के आदेश को पाकर दासी ने शीघ्र ही जाकर व्यापारियों से कहा-“हे व्यापारियों! मेरी स्वामिनी आपको बुला रही है। अतः आप मेरे साथ आईए।"
उनमें से एक वाचाल व्यापारी बोलने लगा-"तुम्हारी स्वामिनी हमें क्यों बुला रही है? हम वहाँ जाकर क्या करेंगे? हमारे माल को जब राजा भी ग्रहण नहीं कर पाये, तो तुम्हारी वृद्धा स्वामिनी क्या करेगी?"
दासी ने कहा-"आपके जैसे अनेक व्यापारी हमारी स्वामिनी के महल में आये हैं और आते हैं, वे सभी अपने-अपने भाग्यानुसार लाभ लेकर जाते हैं। कोई भी खाली हाथ नहीं जाता। आप तो कोई नये ही दिखायी देते हो, जो कि व्यापार के तरीके नहीं जानते। माल अनेकों को दिखाया जाये, तो कोई न कोई ग्राहक मिल ही जाता है। अगर माल ही नहीं दिखाया जाये, तो ग्राहक कैसे मिलेगा?"
तभी अन्य व्यापारियों ने कहा-"क्यों प्रलाप करते हो? हम व्यापारी हैं। सैकड़ों लोगों को सैकड़ों बार माल दिखाते हैं, तभी कोई खरीदता है। इसमें क्रोध