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________________ धन्य-चरित्र/309 दान-भोगादि करते हैं, अपने सुख से निरपेक्षित रहते हुए परोपकार करते हैं, वे उच्च से भी उच्च लोगों के मध्य लज्जा, प्रतिष्ठा, मान महत्त्व आदि को प्राप्त करके परलोक में महर्द्धिक देवों में उत्पन्न होते हैं। वहाँ से च्यवकर अति शीघ्र संसार का अंत करते है। इस संसार में वे पुरुष विरले ही होते हैं, जो भोगदेव की तरह छल को पहचान जाने से चतुराई से लक्ष्मी के द्वारा नहीं छले जाते हैं। उनके द्वारा तो त्याग-भोग-विलास-उपकार आदि के द्वारा लक्ष्मी रूपी रस को चबाकर बाद में अशुद्धता को जानकर उसे गुप्त रूप में त्याग दिया जाता है। उन पुरुषों के गुण आज भी गाये जाते हैं। इसलिए हे कुमार! अनर्थ को देने में दक्ष लक्ष्मी जब तक हमारा त्याग न करे, उससे पहले ही हमें उसका त्याग कर देना चाहिए, जिससे महत्व की प्राप्ति हो। जो पुनः लक्ष्मी के द्वारा पहले ही त्यक्त हो चुके हैं, वे पुरुष इस लोक में तथा परलोक में अति लघुता को प्राप्त होते हैं, जिसे कहना भी शक्य नहीं है। अतः यदि निराबाध सुख की अपेक्षा है, तो सभी अनर्थों की मूल राज्य आदि पर-भाव-मूर्छा का त्याग करके संयम में रति करो।" इस प्रकार केवली की देशना सुनकर शीघ्र ही त्याग करने में अशक्य होने से आत्म-शुद्धि करने के लिए श्रावक धर्म ग्रहण करके और केवली को नमन करके केरलकुमार घर चला गया। बहुत समय तक सम्यक्त्व से युक्त श्रावक धर्म को कसौटी पर कसकर संयम के अभिमुख होता हुआ पिछली रात्रि में धर्म-जागरणा करते हुए चिन्तन करने लगा-"पहले श्री जिनेश्वर भगवन्त के द्वारा उपदेश से जागृत किये जाने पर भी संयम में अशक्त होने से मेरे द्वारा गृहर्थ-धर्म अंगीकार किया गया। आज तक मैंने यथा-शक्ति व्रतों का पालन किया। इच्छानुरूप इन्द्रिय-सुख का सेवन किया। कुछ भी कमी नहीं रही। अगर मेरे अब कुशलानुबन्धी पुण्य का उदय हो, तो ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मण्डप, द्रोण आदि में विचरते हुए जगत के नेत्र समान श्री जिनेन्द्र यहाँ पधारें और मैं पूर्ण मनोरथवाला महाभक्ति से श्री जिनेश्वर देव को नमन करके संयम की प्रार्थना करूँ। वे करुणानिधि तो शीघ्र ही संयम प्रदान करेंगे। उसके बाद संयम पाकर मैं इस प्रकार से उल्लासपूर्वक संयम में पुरुषार्थ करूँगा, जिससे मुझे फिर से इस भव-संकट में न गिरना पड़े।" इस प्रकार की भावना भाते हुए प्रभात का समय हो गया। तब शय्या से उठकर प्राभातिक कृत्य करके जब आस्थान सभा में आया, तभी पूर्व दिशा के उद्यान-पालक ने आकर बधाई दी-"स्वामी! आज सकल सुरासुरेन्द्र, नरेन्द्र, खेचरेन्द्र आदि के समूह द्वारा सेव्यमान चरण-कमलवाले श्रीमान तीर्थंकर भगवन्त ने अपने
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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