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धन्य-चरित्र/305 युक्त रहना। व्रत-नियमादि के द्वारा आत्मा को भावित करना। जब हमारी जैसी अवस्था हो जाये, तो तुम भी इसी रीति से भागवती दीक्षा ग्रहण करना।"
सभी को इस प्रकार कहकर बढ़ते हुए परिणाम से शुभ ध्यान से उल्लासित मनवाला होकर शुभ अध्यावसाय के वशीभूत होकर मनोरथ करने लगा कि मैं कल प्रातः जन्म-जरा-मरण आदि दुःखों से रहित मुक्ति के अवन्ध्य कारण, सम्पूर्ण कल्याणों का एकमात्र स्थान संयम को ग्रहण करूँगा। ग्रहण करके विविध प्रकार के तप, संयम, विनय आदि के द्वारा चारित्र की आराधना करके संसार से तर जाऊँगा। इस प्रकार की भावना भाते हुए शय्या पर सो गया। आधी रात्रि हो जाने पर स्त्री का रूप धारण करके लक्ष्मीदेवी भोगदेव को बोली-“मैं तुम्हारे द्वारा यदृच्छा से दी गयी, भोगी गयी, विलास के रूप में मेरा व्यय किया गया, बिना मेरे छोड़े भी तुमने मुझे मुक्त कर दिया। मुझसे विरक्त होकर तुम एकमात्र संयम के रसिक हो गये हो। अतः मैं तुम्हारे द्वारा छली गयी। मैंने तो अनेकों को छला है, पर आज तुमने मुझे छला है। बोलो! अब मैं क्या करूँ?"
भोगदेव ने कहा-"अब मेरे लिए तुम्हारे द्वारा कुछ भी करने के लिए नहीं है। जहाँ इच्छा हो, वहाँ जाओ। तब वह चली गयी। महोत्सव पूर्ण होने पर आडम्बरपूर्वक शिविका पर आरूढ़ होकर भोगवती के साथ प्रशान्ताचार्य के पास जाकर, गुरु-दर्शन होते ही शिविका को छोड़कर, हाथों को जोड़कर, गुरु के सामने आकर, विधिपूर्वक वंदना करके विनति करने लगा-“हे कृपानिधि! मैं राग, द्वेष, प्रमाद आदि से घिरा हुआ जन्म, जरा, मरण, शोक आदि अग्नि में जलते हुए लोगों को देखकर संसार के भय से उद्विग्न मनवाला होकर रत्नों के करण्डक के समान अपनी आत्मा को लेकर भागता हुआ आपकी शरण में आया हूँ। अतः चतुर्गति के दुःखों का नाश करने में समर्थ चारित्र प्रदान कीजिए।"
गुरु ने कहा-“हे देवानुप्रिय! जिसमें आत्मा का हित हो, वही करो। शुभ कार्य में प्रमाद मत करो।"
तब उत्तर-पूर्व दिशा में अशोक वृक्ष के नीचे जाकर, आभरण-अलंकार आदि का त्याग करके, स्वयंमेव पंचमुष्टि के लोच के बहाने से पाँच प्रमादों का त्याग करके अथवा पाँच शब्दादि विषयों को जड़ सहित उखाड़कर पुनः गुरु के समक्ष उपस्थित हुआ। तब गुरु ने भी मुनिवेष प्रदान किया। उस वेश को मस्तक पर रखकर, हर्षपूर्वक पहनकर, गुरु-चरणों में वंदन करके आगे आकर खड़ा रहा। तब गुरु ने भी यथाविधि पंच-महाव्रत ग्रहण करवाये, रोहिणि-कथा के द्वारा शिक्षा देकर प्रमुदित किया। इसी प्रकार भोगवती को भी संयम ग्रहण करवाकर