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________________ धन्य-चरित्र/227 उन्होंने कहा-"इसे किसी भी तरह से प्रभात में विष से मिश्रित कुछ भी पक्वान्न दिया जाये। वह उसे लेकर मार्ग में दूर जाकर यथावसर भक्षण करेगा, जलपान करके आगे जाते हुए मार्ग में गिरकर मर जायेगा, तभी हम दुःख से मुक्त हो सकेंगे।" सभी ने इसे मान लिया। उसकी सलाह के अनुसार संस्कारित किये हुए विष-मिश्रित पाथेय को बनाकर पहले से ही रख लिया गया, जिससे कि परीक्षण में कुशल इन्सान भी इसे सविष न जान पाये। जब लौहजंघ दूत आकर दूसरे दिन रवाना हुआ, तो उन नगरजनों के द्वारा वे मोदक दिये गये। वह उन्हें लेकर चला। भूख लगने पर वह मोदकों को खाने के लिए एक सरोवर के किनारे पर बैठ गया। जब पोटली खोलने लगा, तो शकुनों के द्वारा रोका गया। क्षुधित होने पर भी उसने नहीं खाया। वह शकुन-शास्त्र में कुशल था और जानता था कि शकुन-शास्त्र में निषिद्ध कार्य नहीं करना चाहिए। भूखा ही वह कुछ आगे चला। थोड़ा मार्ग कट जाने के बाद वह पुनः खाने के लिए बैठा। पुनः शकुनों के द्वारा निषेध किया गया। तीसरी बार भी ऐसा ही हुआ। तब पक्षी की आवाज के ज्ञाता उस दूत ने निर्धारित किया कि पक्षी की आवाज इस कार्य का निषेध करती है, शकुन भी वारण कर रहे हैं। अतः मुझे मार्ग में नहीं खाना चाहिए। घर जाकर ही भोजन करना चाहिए। जो होना है, हो जाये। इस प्रकार निश्चित करके आगे बढ़ गया। भूख से क्षाम–कुक्षिवाला वह साहस का अवलम्बन लेकर अत्यधिक प्रयासपूर्वक शिथिल हुए अंगोपांगवाला तथा निस्तेज मुखवाला लड़खड़ाती वाणी में प्रणाम करके राजा के सामने खड़ा रहा। राजा ने भी उसको उस स्थिति में देखकर विस्मित होते हुए पूछा- “हे लौहजंघ! तुम शिथिलता से युक्त क्यों दिखायी दे रहे हो? क्या तुम्हें किसी रोग से पीड़ा हो रही है, जो कि तुम इस प्रकार के दिखायी दे रहे हो? सत्य-सत्य कहो।" उसने कहा-“स्वामी! आपकी कृपा को प्राप्त मुझे कुछ भी आर्ति नहीं है। पर मैं क्षुधा से अत्यन्त पीड़ित हूँ, इसीलिए ऐसी दशा हो गयी है।" राजा ने कहा-"मेरे राज्य में क्या तुम्हें पाथेय भी नहीं मिलता?" उसने कहा-"आपकी कृपा से बहुत पाथेय मिलता है, पर मैंने खाया ही नहीं।" राजा ने पूछा-"क्यों?" तब उसने मार्ग में घटित घटनायें बतायीं। राजा ने कहा-"वह पाथेय
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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