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धन्य-चरित्र/221 जाये?"
__ तब एक निपुण मतिवाले ने कहा-“इनके स्वजनादि तथा पुत्रादि पूर्व में अनुभूत संकेतों को पूछे, तो जो यथाभूत बोले, वह सत्य है, इसके विपरीत झूठ है।"
महाजनों के द्वारा वैसा ही किये जाने पर मूल श्रेष्ठी ने अपने द्वारा अनुभूत संकेत बता दिये। कूट धनकर्मा ने भी देवी की सहायता से चूड़ामणि शास्त्र को जानकर सभी विशद रीति से बता दिया। तब सभी महासभ्य श्रेष्ठी समान संकेत को पूर्ण जानकर भग्न-प्रतिज्ञावाले हो गये। "अहो! समान आकारवाले, समान अभिनयवाले, समान बोलनेवालों में किस उपाय से सत्य-असत्य के विभाग का निर्णय किया जाये? इसलिए जब तक इन दोनों के सत्य-असत्य का निर्णय न हो जाये, तब तक घर के अन्दर इन दोनों में से एक का भी प्रवेश न होने पाये।"
इस प्रकार महाजनों के द्वारा जबर्दस्ती निषेध किये जाने पर दोनों ही अन्य-अन्य स्थान पर रहते हुए भी प्रतिदिन प्रभात में उठकर विविध कलह-गति के द्वारा झगड़ने लगे। नित्य कलह करने के द्वारा उद्विग्न होकर नगर के लोगों ने पुनः इकट्ठे होकर कहा-"तुम दोनों राजद्वार में जाओ। वहाँ राजा के प्रताप से और पुण्य से भी ज्यादा बुद्धिबल के योग से सत्य-असत्य का विभाग होगा।"
तब लोगों के द्वारा प्रेरित वे दोनों राजा के समीप गये। राजा को नमन करके अपना-अपना दुःख कहकर खड़े हो गये। राजा ने भी पूर्ववत् समान आकार और समान बोली सुनकर श्रान्त होते हुए मंत्रियों को आदेश दिया-"इन दोनों का न्याय करो।"
मंत्रियों ने भी इस न्याय को करने में विविध वचन-रचना के द्वारा अनेक छल-दृष्टान्त बताये, पुनः-पुनः प्रश्न करके, वाक्छल, भयादि दिखाये, लेकिन नपुंसक पर जवान स्त्री के कटाक्षों की तरह सब कुछ निष्फल साबित हुआ। तब विचारमूढ़ता को प्राप्त होते हुए उन्होंने राजा के आगे जाकर कहा- "हमारा जितना बुद्धि-विलास है, उतना इन दोनों के सत्य-असत्य के विभाग के लिए प्रयुक्त किया, फिर भी कुछ फल प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि इतने दिनों से धारा हुआ बुद्धिगर्व भी विफलता को प्राप्त हुआ।"
इस प्रकार के मंत्रियों के वाक्य को सुनकर राजा ने विषादपूर्वक कहा-"अगर हमारी सभा में इन दोनों का निर्णय नहीं होता है, तो मेरे ही महत्व की हानि होती है। अतः अब क्या करना चाहिए?"
तभी किसी ने कहा-“स्वामी! यह वसुन्धरा बहुरत्ना कही जाती है।