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धन्य-चरित्र/195 इस प्रकार उनके द्वारा उकसाये हुए वे सभी लोभी दौड़ते हुए चले गये। पण्डित-जन और महा-इभ्य व्यापारी वहाँ बैठे हुए वार्ता सुनने लगे। थोड़ी देर बाद पुनः उसी नगर का निवासी अन्य कोई ब्राह्मण भव्य वस्त्र-भोजनादि हाथ में लेकर दौड़ता हुआ वहाँ आया। वहाँ रहे हुए पण्डितों और ब्राह्मणों ने पूछा-"यह किसके घर से प्राप्त हुआ?"
उसने कहा-"राजा के अमुक मंत्री का पुत्र नीरोगी हुआ है, मरणान्त कष्ट से निकलकर स्नान कर रहा है, अतः उसके पिता प्रत्येक ब्राह्मण को पाँच-पाँच वस्त्र, भव्य भोजन और एक-एक सोने की दीनार दे रहा है। आप लोग यहाँ क्यों बैठे हैं? वहाँ क्यों नहीं जाते? वहाँ जाइए। आप लोग तो पण्डित हैं, आपको तो वे बहुत देंगे।"
यह सुनकर पंडित और ब्राह्मण लोभ में आकर दौड़ गये। कुछ महा-इभ्य और साहूकार ही वहाँ रुके रहे।
तब फिर कोई दलाल नाम का व्यापारी आकर महा-इभ्यों के सामने कहने लगा-"श्रेष्ठीयों! बहुत दिनों तक यहाँ ठहरने के बाद आज एक वैदेशिक सार्थवाह जाने की इच्छा कर रहा है। वह अनेक वस्त्र, विविध क्रयाणक और विविध रत्न मुँहमाँगे दामों पर खरीद रहा है और अपना माल बहुत सस्ते में बेच रहा है। अनेक व्यापारी गये और इच्छित मूल्य ग्रहण करके आ गये। तुम लोग क्यों नहीं जाते? अपना माल क्यों नहीं बेचते? ऐसा अवसर फिर कहाँ लब्ध होगा?"
यह सुनकर महेश्वर लोग भी उठ गये। अब केवल निर्धन साहूकार ही वहाँ बैठे हुए प्रवचन सुनने लगे। इसी समय गृहस्वामी ने वृद्धा को कहा-“माता! ग्रीष्मकाल है। भव्य-जल से स्नान कर लीजिए।"
उसने कहा-"ठीक है।"
तब गृहपति ने अपनी पत्नी से कहा-"मंजूषा में भव्य सुगन्धित तेल है। उसे लाकर अभ्यंगपूर्वक स्नान कराओ। मैं घर के ऊपरी भाग में जाकर माताजी के योग्य वस्त्र निकालकर लाता हूँ।"
तब सेठानी और बहू के द्वारा तेल के अभ्यंगनपूर्वक स्नान करवाया गया। भव्य वस्त्र से शरीर पोंछा। सेठ ने भी भव्य वस्त्र लाकर वृद्धा को पहनाये । पुनः उसे सुखासन पर बिठाया। तब बुढ़िया ने पूछा-"तुम्हारे घर-आँगन में कौन जोर-जोर से बोल रहा है?"
सेठ ने कहा-"माता कोई वैदेशिक द्विज आया हुआ है। वह जोर से अनेक भव्य सूक्तियों को पढ़ रहा है और अनेक लोग सुन रहे हैं।"
वृद्धा ने कहा-“ऐसा है। अहो! मेरे कर्मों का दोष है। धन्य हैं वे रसिक जन! जो कि सहर्ष सुनकर प्रसन्नता के पात्र बन रहे हैं। मेरे कानों में तो तपे हुए सीसे से सिंचन करने के समान उसके शब्द लगते हैं।"