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धन्य-चरित्र/12 प्रत्येक खम्भे की दीवार पर विविध प्रकार के विशिष्ट चित्र अंकित थे, जो कि अनेक आश्चर्यो से युक्त एवं सारे द्रव्य के साथ साध्य थे। चीनांशुक से विनिर्मित चन्द्रमा के उदय से शोभित थे। चित्रों में अत्यधिक प्रफुल्लित केदार के पुष्पों की नकल दृष्टि को व्यामोहित करती हुई विस्तीर्ण थी। अति मृदु गुण से युक्त शारीरिक अवयवों के सहारे से सुखद रूप से ऊँची उठी हुई दीवारें चारों ओर शोभित थीं। अनेक सुर, असुर, नर, किन्नर, विद्याधर, हाथी, घोड़े, हँस, सारस, मयूर, चकोर, कबूतर, वनलता, पद्मलता आदि की प्रमुखतावाले विचित्र चरित्रों से दिवारें चित्रित थीं। सोने व चाँदी के बने हुए मसि-पात्र व पान-दानियों से वहाँ का भू-प्रदेश शोभित था। सभी प्रकार से वह भवन राजा के महल का अनुकरण करता था।
यह सब देखकर विश्वभूति चिंता करने लगा-"अहो! निष्प्रयोजन धन का व्यय करनेवाला यह कैसा व्यापारी है? यह तो कोई उड़ाऊ व्यक्ति प्रतीत होता है। इस प्रकार निरर्थक व्यय करने से घर में कितने दिनों तक लक्ष्मी रहेगी? यह तो थोड़े ही दिनों मे निरर्थक व्यय करके निर्धन हो जायेगा। लोगों को यह क्या देगा? इस प्रकार की व्यवस्था तो राज-द्वार में घटित होती है, जहाँ सहज वृत्ति से धन आता रहता है। साहुकार को तो नीति द्वारा प्रवर्तन करना ही श्रेष्ठ है। मेरा तो भाग्योदय हुआ है, जो कि इस प्रकार की बुद्धि पैदा हुई है। मैंने यहाँ आकर अच्छा ही किया। अब मैं इसके पास से मूलधन व ब्याज लेकर अन्य किसी नीतिवादी के घर में दूंगा।"
इस प्रकार आस्थान द्वार पर स्थित जब वह चिन्ता कर रहा था, तभी देवभद्र श्रेष्ठी ने उसे देखा। श्रेष्ठी भी आसन से उठकर उसके सम्मुख गया-"आइए ब्राह्मण श्रेष्ठ! अपने पाँवों को यहों विश्राम दीजिए। इस आसन को अलंकृत कीजिए।" इत्यादि शिष्टाचार-पूर्वक अपने आसन के बराबर आसन पर उसे सम्मान–पूर्वक बैठाया, क्योंकि
द्विजो निर्गुणोऽपि कृपणो धनी सर्वत्र मानमाप्नोति।
ब्राह्मण गुण-रहित और धनी कृपण होने पर भी सर्वत्र सम्मान को प्राप्त होता है। कहा भी है
सर्वत्र सेव्यते लोकैः धनी च कृपणो यदि।
स्वर्णाचलस्य परितो भ्रमन्ति भास्करादयः ।। अर्थात् धनी कृपण होते हुए भी सर्वत्र लोगों द्वारा सेवित होता है। स्वर्णमय सुमेरु-पर्वत के चारों ओर सूर्यादि परिभ्रमण करते हैं। सुख-क्षेम आदि की वार्ता पूछकर आने का प्रयोजन पूछने पर द्विज ने कहा-"पूर्व में मैंने आपके पास धन स्थापित किया था। अब कुछ जरूरी कार्य आ पड़ा है, अतः वह सारा धन ग्रहण करने के लिए आया हूँ। कृपया ब्याज सहित मेरा धन प्रदान कर दीजिए।"