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धन्य-चरित्र/136 आपका नेत्र लेकर आऊँ।"
गोभद्र सेठ के वचनों को सुनकर सिर से भ्रष्ट वानर अथवा दाँव से च्युत जुआरी की तरह वह कपटी अपने चक्षु को देने में असमर्थ होता हुआ लज्जित हुआ।
इस प्रकार धन्य की चतुरता से गोभद्र सेठ द्वारा प्रयुक्त करायी गयी बुद्धि से धूर्त के वचन-जाल में प्रकट ही कपट जानकर बहुत ही विडम्बनापूर्वक उसे देश से निकाला गया। गोभद्र सेठ भी इस विपदा से उत्तीर्ण होता हुआ राहु-दंश से मुक्त चन्द्रमा की तरह और भी ज्यादा यशः श्री से शोभित होने लगा। प्रत्येक घर में प्रत्येक जन के द्वारा धन्य की सुबुद्धि के विलास को सुनकर सोमश्री और कुसुमश्री भी हर्षित होती थीं।
गोभद्र सेठ की पुत्री सुभद्रा भी उसके गुणों में रंजित होती हुई उसके साथ पाणिगहण करने के लिए उत्सुक हो उठी। स्वजन भी धन्य को कन्यादान करने के लिए उत्कण्ठित होते हुए गोभद्र को निवेदन करने लगे। तब गोभद्र सेठ ने भी विविध महोत्सवपूर्वक करोड़ों से भी अधिक धन-दानपूर्वक अपनी पुत्री सुभद्रा धनसार के पुत्र धन्य को दी। धन्य भी उसको गुण से खरीदी हुई राम की जानकी की तरह मानता था।
इस प्रकार धन्य अतुल उत्साह-मन्त्र-शक्ति आदि से राजा की तरह तीन प्रियाओं से युक्त होकर परम प्रौढ़ता को प्राप्त हुआ। गोभद्र सेठ भी कृत-कृत्य होकर श्रीमद् महावीर की सन्निधि में शुद्ध चारित्र को ग्रहण करके सम्यक विधिपूर्वक आराधना करके स्वर्गलोक में महान ऋद्धिवाले देव बने।
जब उस देव ने अपने ज्ञान से पूर्वभव के पुत्र शालिभद्र को देखा, तो उसे पुण्यनिधि जानकर पुत्र-प्रेम तथा पुत्र-पुण्य से आकृष्ट चित्तवाले होकर प्रतिदिन आकर बत्तीस प्रियाओं युक्त शालिभद्र के लिए तीन-तीन खंड से युक्त दिव्य भोगों से भरी हुई तेंतीस निधि की उपमावाली मंजूषाएँ प्रत्येक प्रातः में आकाश से उतारता था।
उन मंजूषाओं में से प्रत्येक मंजूषा के एक-एक खंड में कस्तूरी आदि दिव्य सुगन्धित द्रव्य और विविध वस्त्र, दूसरे खण्ड में मणि-रत्नों से जड़े हुए अनेक प्रकार के स्व-स्व के चित्त को रंजित करनेवाले दिव्य आभरण निकलते थे। तीसरे खंड में विविध उत्तम राज-द्रव्यों से मिश्रित, अनेक प्रकार के घी से मिश्रित, मोदक आदि सुखासिका आदि दिव्य भोजन, द्राक्ष, खजूर, अखरोट, कदली, नारंगी आदि फल तथा ताम्बूल आदि निकलते थे। उस दिन से प्रतिदिन आयी हुई मंजूषा में रहे हुए वस्त्रादि को वे लोग अपने-अपने भोग के लिए ग्रहण करते थे। अगले दिन उनको देव पर चढ़ाकर उतारे हुए द्रव्य की तरह निर्माल्य मानकर कुएँ में डाल देते थे। इस प्रकार के भोग-योग्य पदार्थों की गोभद्र देव बत्तीस प्रियाओं से युक्त शालिभद्र के लिए प्रतिदिन पूर्ति करते थे। शालिभद्र भी यथेच्छित दिव्य सुखों के साथ निःशंक होकर