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________________ करने वाले आ० श्री क्षेमकीर्तिसूरि ने उपा० धर्मकीर्ति को आचार्य पद दिया और उनका नाम आ० श्री धर्मघोषसूरि रखकर आ० श्री देवेन्द्रसूरि के पट्ट पर स्थापित किया । इस तरह आ० श्री धर्मघोषसूरि तपागच्छ-नायक बने । आ० श्री धर्मघोषसूरि विद्वान्, कवि, सिद्धपुरुष, ग्रन्थकार और प्रभावक युगप्रधान हुए। एक बार समुद्र-किनारे खडे रहकर मन्त्रमय 'समुद्र-स्तोत्र' की रचना कर उसे ललकारा । समुद्र में ज्वार उभरा और रत्न उछले जिनसे आचार्य श्री के पाँवों के आगे रत्नों का ढेर लग गया । ____ एक बार उज्जैन में किसी योगी ने मन्त्रबल से चूहा को साधुओं की बसति में भेजा । आचार्य श्री ने एक घडे का मुँह बंद कर मन्त्र-जाप आरम्भ किया । योगी रोता चिल्लाता आया और आपके पाँवों मे गिरकर क्षमा माँगने लगा। ऐसे अनेक प्रसंग आपके जीवन-काल में आये । किसी मन्त्री ने आठ यमकवाला कोई काव्य प्रस्तुत करते हुए कहावर्तमान काल में ऐसा काव्य बनाने वाला कोई नहीं है । आचार्य श्री ने कहा'कोई नहीं' यह कहना उचित नहीं है । मन्त्री ने कहा- ऐसा कोई कवि हो तो बताइए । आचार्य श्री ने एक ही रात्रि में आठ यमकवाली 'जय वृषभ' पद से आरम्भ कर स्तुति बनाई और दीवार पर लिख दी । मन्त्री दूसरे दिन स्तुति पढकर आश्चर्यचकित हुआ और आचार्य श्री के उपदेश से प्रतिबोध को प्राप्त हुआ। आचार्य श्री ने वि.सं. १३३२ में अपने विद्वान् और संयमी शिष्य सोमप्रभ को आचार्य पद से अलंकृत किया और अपने पास की मन्त्र-पोथी दी, किन्तु नये आचार्य श्री ने हाथ जोडकर कहा- आपकी कृपा ही मेरे लिए सर्वस्व है । आ० श्री धर्मघोषसूरि ने एक तरफ आ० श्री सोमप्रभसूरि की निःस्पृहता और दूसरी तरफ अन्य किसी शिष्य में योग्यता का अभाव देखकर मन्त्र-पोथी को जलशरण कर दिया। ___ आप श्री के उपदेश से दयावट दियाणा तीर्थ (जि. सिरोही) में वि.सं. १३४६ में ग्रन्थभण्डार की स्थापना हुई । वि.सं. १३५७ में आप स्वर्गवासी हुए । आप श्री की ग्रन्थरचना निम्न प्रकार है : (८९)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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