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________________ नियत रखा एवं उनके पुत्र बाहड और अंबड को क्रमशः अपना महामात्य और दंडनायक बनाया । कुमारपाल ने सौराष्ट्र के उद्धत विद्रोही सुंवर को शिक्षा देने हेतु वृद्ध मंत्री उदयन को अपने छोटे भाई कीर्तिपाल और नाडोल के राजा आल्हण चौहाण आदि के साथ भेजा। बीच रास्ते में शत्रुजय तीर्थ यात्रा करते समय उदयन ने लकडे के मूल मन्दिर को कभी भी आग लगने की आशंका से उसका उद्धार कर पाषाण का मन्दिर बनवाने की प्रतिज्ञा की । बाद में मन्त्रीने युद्ध में सुंवर को जीत लिया, किन्तु स्वयं घायल हो जाने से तथा वृद्धावस्था के कारण अशक्त हो जाने से सैन्य के साथ वढवाण की छावनी में आ पहुँचे । मन्त्रिराज को लगा कि आयुष्य अल्प है । अतः राजभ्राता कीर्तिपाल और अन्य सामंतों को बुलवाकर कहा- अब मेरे जीने की संभावना कम है । अतः मैंने जो प्रतिज्ञा की है उसे मेरे पुत्रों को पूरी करनी है । यह संदेश मेरे पुत्र बाहड, अंबड वगैरह को पहुँचाना । दूसरी इच्छा यह है कि कोई मुनिराज आकर मुझे अंतिम आराधना करावें । कीर्तिपाल वगैरह ने कहा- महामात्य ! आप चिन्ता न करें । आपका यह संदेश आपके पुत्रों को पहुँचा देंगे और वे आपकी प्रतिज्ञा को अवश्य पूरी करेंगे । इतना ही नहीं, हम भी इस कार्य में पूरा सहयोग देंगे। ___ महामात्य की इच्छानुसार कोई मुनिराज तत्काल आ सकें, ऐसा संभव नहीं था । अतः सामंतों ने एक युवान बहुरूपी को जैन साधु का वेष पहिना कर कुछ शिक्षा दी और महामात्य के समीप उपस्थित कर दिया। महामात्य उदयन ने उसे नमस्कार किया और स्वयं दश प्रकार की अंतिम आराधना कर हँसते मुँह वि.सं. १२०७-८ में स्वर्ग सिधार गये । वेषपरिवर्तन से भावपरिवर्तन दूसरी तरफ उस बहुरूपी युवान को विचार सूझा कि मेरे जैसा सामान्य मनुष्य भी जैन साधु का वेष पहिनने मात्र से महामात्य का भी पूज्य बना तो अब यदि सच्चा साधु बन जाऊँ तो मुझे कितना लाभ होगा । मेरा आत्मकल्याण होगा । इस विचार ने उसे सच्चा साधु बना दिया । वह भाव साधु बना । उसने शुद्ध संयम को पाला । अन्त में गिरनार तीर्थ में जाकर अनशन किया और वह स्वर्गवासी हुआ। (७४)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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