________________
पत्री की इस बात को सुनकर कवि के आश्चर्य और आनन्द का पार न रहा कुछ ही समय में कविराज ने बालिका के मुख से सुनकर पूरा ग्रन्थ लिख लिया और ग्रन्थ का नाम 'तिलकमंजरी' रखा ।
इस घटना के बाद कविराज धारा छोडकर साचोर में आकर रहने लगे । कविराज ने 'पाइयलच्छीनाममाला' 'धनञ्जय कोश', 'शोभनकृत चतुर्विंशतिजिन स्तुति' की टीका, 'सावगघम्मपगरण', 'वीरथुई,' 'वीरस्तुति' आदि ग्रन्थों की भी रचना की। कविराज का समय अनुमानतः वि.सं. १०१० से १०९० है।
मलधारी आचार्य श्री अभयदेवसूरि ___ हर्षपुरीय गच्छ के आ० श्री विजयसिंहसूरि के आप शिष्य थे । विद्वान् होने के साथ-साथ आप निरन्तर बेले-तेले (छ?-अट्टम) का तप करते थे । जीवन भर आपको पांच विगई का त्याग था । चक्रेश्वरी देवी का आपको सान्निध्य था । आप स्वयं परम शान्त थे और आपके दर्शन मात्र से दर्शक शान्ति का अनुभव करते थे । अनेक राजा महाराजा आपसे प्रभावित थे । बहुत से मन्त्री तो शिष्य की तरह आपके भक्त थे।
गुजरात के राजा कर्णदेव ने आपके शरीर और वस्त्रों को अतीव मलीन देखकर आपकी निःस्पृहता से प्रभावित हो कर आपको 'मलधारी' का बिरुद दिया था । आ० श्री गोविंदसूरि के विद्वान् विद्या-शिष्य आ० श्री वीराचार्य ने आपको सूरिमन्त्र दिया था, जिसकी आराधना से आपका प्रभाव दिन दुगुणा और रात चौगुणा बढा।
आपके उपदेश से शाकंभरी के प्रथम राजकुमार पृथ्वीराज ने रणथंभोर के जैन मन्दिर पर सुवर्ण-कलश चढाया था तथा गुजरात के मन्त्री शान्तू ने भरुच के 'शकुनिका-विहार' जैन मन्दिर पर सुवर्ण-कलश चढाया था । ग्वालियर नरेश भुवनपाल भी आपसे प्रभावित था । एलिचपुर (महाराष्ट्र-विदर्भ) के राजा श्रीपाल ने श्रीपुर में आपसे अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ की प्रतिष्ठा वि.सं. ११४२ में करवाई थी । सौराष्ट्र का राजा रा'खेंगार भी आपका भक्त था । सिद्धराज ने आपके उपदेश से अपने पूरे प्रदेश में पर्युषण पर्व, एकादशी आदि दिनों में अमारि घोषणा करवा कर पशु-वध बन्द करवाया था।
पाटण में ४७ दिनों का अनशन कर आप वि.सं. ११६८ में स्वर्गवासी हुए।
(६०)