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आचार्य श्री भूतदिन और पांचवीं आगमवाचना
आचार्य श्री नागार्जुन के शिष्य आचार्य श्री भूतदिन का दोनों वाचनाओं में उल्लेख मिलता है । इनका युगप्रधानकाल वी. नि. ९०३ से ९८२ है । वी.नि. ९८० में आपने, आचार्य श्री कालकसूरि ने और देवर्धिगणि क्षमाश्रमण ने मिलकर सभी आगमों को पुनः संकलित किया जो पांचवीं वाचना कहलाई ।
आचार्य श्री कालकसूरि (चौथे)
आचार्य श्री कालकसूरि का युगप्रधान काल वी. नि. ९८२ से ९९३ है । वल्लभी के राजा ध्रुवसेन के पुत्रमरण के शोक निवारण हेतु सभासमक्ष आपने कल्पसूत्र पढकर सुनाया था । तब से कल्पसूत्र सभा के समक्ष प्रतिवर्ष पढा जाता है । वल्लभी की पांचवी आगमवाचना वी. नि. ९८० में हुई, उसमें आप भी थे । तुरमणि के शासक दत्त को सत्य का उपदेश देने के लिए भी आप प्रसिद्ध हैं ।
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आचार्य श्री देवर्धिगणि क्षमाश्रमण
चौदहवें पट्टधर श्री वज्रसेनसूरि के शिष्य आर्यरथ की परम्परा में आर्यसिंह के शिष्य आर्यधर्म हुए । आर्यधर्म के शिष्य आर्यशाण्डिल्य हुए, और आर्य शाण्डिल्य के देवर्धिगणि क्षमाश्रमण हुए। इनका दूसरा नाम आचार्य श्री देववाचक है । ये पूर्व जन्म में इन्द्र के सेनापति हरिणैगमेसी देव थे, जिन्होंने इन्द्र की आज्ञा से देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशला माता की कुक्षि में श्री महावीरस्वामी को रक्खा था । वल्लभी में वी.नि. ९८० की आगमवाचना के आप अगुआ थे । नन्दिसूत्र की रचना आपने ही की । वी. नि. १००० में शत्रुञ्जय पर अनशन कर स्वर्गवासी हुए । श्री सत्यमित्र अन्तिम (पूर्वधर)
श्री सत्यमित्र प्रभु - शासन के अन्तिम पूर्वधर हुए । इनका युगप्रधान काल वी.नि. ९९३ से १००० है ।
आचार्य श्री मानतुङ्गसूरि (बीसवें पट्टधर )
आचार्य श्री मानदेवसूरि के पट्टधर आचार्य श्री मानतुङ्गसूरि हुए । 'भक्तामर स्तोत्र' की रचना कर थाणेश्वर के राजा श्रीहर्ष को आपने प्रभावित किया था । 'नमिऊण' स्तव भी आपकी रचना है । धारानगरी (उज्जयिनी ) के राजा भोज की
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