SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शेठ मणिभाई के पुत्र शेठ कस्तूरभाई ने वि.सं. १९९० में मुनिसम्मेलन का सफल संचालन करवाया था । यह वि.सं. २००४ में स्वर्गवास हुए । कवि श्री ऋषभदास खंभात निवासी ऋषभदास प्रारंभकाल में उपाश्रय में सफाई का कार्य करता था । सुना जाता है कि एक बार उपाश्रय में कोई गुणवान् साधु महात्मा रहे हुए थे। उनके गुणों से आकृष्ट किसी देवता ने उपाश्रय के आले में एक प्रभावशाली लड्डू रख दिया जिसे खाने वाला शीघ्रकवि बन जाए । सफाई करते-करते वह लड्डू ऋषभदास की नजर में आया और उसे वह खा गया । कवित्वशक्ति उसमें प्रकट हो गई। अनेक स्तुति, स्तवन, सज्झाय और रास कवि ऋषभदास ने रचे हैं जिनमें 'भरत-बाहुबलिरास' और 'हीरविजयसूरि रास' मुख्य हैं । यह आचार्य श्री विजयसेनसूरि, आ. श्री विजयदेवसूरि और आ. श्री विजयसिंहसूरि का परम भक्त था। महोपाध्याय श्री समयसुन्दर गणि (खरतरगच्छीय) खरतरगच्छ के ५६ वें पट्टधर आ० श्री जिनचन्द्रसूरि के शिष्य (५७) महोपाध्याय श्री सकलचन्द्र के शिष्य (५८) महोपाध्याय श्री समयसुन्दर का जन्म वि.सं. १६१० या १६२० में साचौर में, दीक्षा वि.सं. १६२८ में और स्वर्गवास १७०३ में हुआ था । ये बडे विद्वान् और कवि थे। वि.सं. १६४९ में काश्मीर में अकबर बादशाह की राजसभा में 'राजानो ददते सौख्यम्' एक चरण के आठ लाख अर्थ वाले रत्नावली' ग्रन्थ की रचना की थी । सारस्वत टीका, लिंगानुशासन की अवचूरि, रघुवंश टीका, कल्पसूत्र-टीका, दशवैकालिक टीका, विशेषशतक, विचारशतक, गाथासहस्त्री, कथाकोश, अनेक चरित ग्रन्थ, भक्तामर स्तोत्र एवं कल्याणमन्दिर स्तोत्र की टीकाएँ इत्यादि संस्कृत एवं गुजराती भाषा में स्तवन, सज्झाय, रास आदि इनकी लोकप्रिय रचनाएँ हैं । योगिराज श्री आनन्दधन योगिराज का मूल नाम मुनि श्री लाभविजय था । ये विद्वान्, निस्पृह और उच्च कोटि के साधक थे । ये सहज आनन्द में रहते थे और इनकी सभी कृतियां (१३०)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy