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प्रकाशकीय निवेदन
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इससे पूर्व भी हमारी संस्था द्वारा 'प्राचीनाः चत्वारः कर्मग्रन्थाः ' 'सप्ततिका नामनो छडो कर्मग्रन्थ ' ' १ थी ५ कर्मग्रन्थ' आदि छोटे बडे ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं ।
आज तक इस समिति द्वारा प्रकाशित किये गये समस्त ग्रन्थरत्नों की आधार शिला दिबंगत परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वर महाराज साहब है । जिनकी सतत सत्प्रेरणा, मार्गदर्शन, प्रस्तुत साहित्य का उद्धार करने की अदम्य उत्कंठा और कालोचित अथक परिश्रम से ही प्रस्तुत ग्रन्थरत्नों का जन्म हुआ है तथा इन्हीं महापुरुष के शुभाशीर्वाद से हम ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन के महत्कार्य में उत्तरोत्तर साफल्य की ओर पदार्पण कर रहे हैं । इन्हीं महात्मा ने हमारी संस्था को कर्म साहित्य के इन ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन का लाभ देकर अनुग्रहीत किया । अतः हम इनके ऋणी है और इस ऋण से कभी भी उॠण नहीं हो सकते। अतः ऐसे परमोपकारी महाविभूति आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब का हम नतमस्तक कोटि-कोटि वन्दन करते हुए, इनके प्रति अवर्ण्य आभार प्रदर्शित कर रहे हैं ।
प्रस्तुत ग्रन्थरत्न के प्रणेता परम पूज्य आचार्य श्रीमद्विजय वीरशेखरसूरीश्वर महाराज साहब का हम सवन्दन आभार मानते हैं । आपके अथक, अविरल, एवं सतत