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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
मानना संशयवाद नहीं तो और क्या है। परन्तु यह कथन अयुक्त है ऐसा अब तक के विवेचन से जाना जा सकता है। जो संशय के स्वरूप को जानता है वह इस स्याद्वाद को संशयवाद कहने का साहस कभी नहीं कर सकता। रात में काली रस्सी पर दृष्टि पड़ने पर "यह सर्प है या रस्सी" ऐसा सन्देह होता है। उक्त संशय में सर्प और रस्सी दोनों वस्तुओं में से एक भी वस्तु निश्चित नहीं होती। एक से अधिक वस्तुओं की ओर दोलायमान बुद्धि जब किसी एक वस्तु को निश्चयात्मक रूप से समझने में असमर्थ होती है तब संशय होता है। संशय का ऐसा स्वरूप स्याद्वाद में नहीं बतलाया जा सकता। स्याद्वाद तो एक ही वस्तु को भिन्न-भिन्न अपेक्षा दृष्टि से देखने को, अनेकांगी अवलोकन द्वारा निर्णय करने को कहता है। विभिन्न दृष्टि बिन्दुओं से देखने पर समझ में आता है कि एक ही वस्तु अमुक अपेक्षा से "अस्ति" है यह निश्चित बात है और दूसरी दृष्टि द्वारा "नास्ति" है यह भी निश्चित बात है। इसी भांति एक ही वस्तु एक दृष्टि से नित्य रूप से भी निश्चित है दूसरी दृष्टि से अनित्य रूप से भी निश्चित है इस तरह एक ही पदार्थ में भिन्न-भिन्न अपेक्षा दृष्टि से भिन्न-भिन्न धर्म (विरुद्ध जैसे प्रतीत होने वाले धर्म भी) यदि संगत प्रतीत होते हों तो उनके प्रामाणिक स्वीकार को, जिसे स्याद्वाद कहते हैं संशयवाद नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः स्याद्वाद संशयवाद नहीं, किन्तु सापेक्ष निश्चयवाद है।
विचार करने पर देखा जा सकता है कि सप्तभंगी में मूल भंग तो तीन ही है : अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य। अवशिष्ट चार भंग तो इन तीन के ही संयोग से बने हैं। सप्तभंगी की विवेचना भगवती सू. (12.10.469) में भी पाई जाती है। किसी भी प्रश्न का उत्तर देते समय इन सात भंगों में से किसी न किसी एक भंग का उपयोग करना पड़ता है।
जिस तरह "प्रमाण" शुद्ध ज्ञान है उसी तरह "नय" भी शुद्धज्ञान है। फिर भी इन दोनों में अन्तर इतना ही है कि एक शुद्ध ज्ञान अखण्डवस्तु स्पर्शी है, जबकि दूसरा वस्तु के अंश को ग्रहण करता है। परन्तु मर्यादा का तारतम्य होने पर भी ये दोनों ज्ञान है शुद्ध है प्रमाणरूप शुद्ध ज्ञान का उपयोग "नय" द्वारा होता है, क्योंकि प्रमाणरूप शुद्ध ज्ञान को जब हम दूसरे के आगे प्रकट करते हैं तब वह एक खास मर्यादा में आ जाने से “नय' द्वारा होता है, क्योंकि प्रमाणरूप शुद्ध ज्ञान को जब हम दूसरे के आगे प्रकट करते हैं जब वह एक खास मर्यादा में आ जाने से "नय" बन जाता है।