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________________ 300 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण - आ.पु. 20.166 -- आ.पु. 10.162 - अ.पु. 10.163 - आ.पु. 10.165 - आ.पु. 10.166 530. त.सू. (के.मु.) 7.3 (वि.) 531. वही 532. धृतिमत्ता क्षमावत्ता ध्यानयोगैकतानता। परीषहैरभङ्गश्च व्रतानां भावनोत्तरा।। 533. जै.द. (न्या.वि.श्री), पृ. 50. 534. पञ्चैवाणुव्रतान्येषां त्रिविधं च गुणव्रतम्। शिक्षाव्रतानि चत्वारि व्रतान्याहुहाश्रमे।। 535. स्थूलात् प्राणातिपाताच्च मृषावादाञ्च चौर्यतः। परस्त्रीसेवनातृष्णा प्रकर्षाच्च निवृत्तयः।। 536. दिग्देशानर्थदण्डेभ्यो विरतिः स्याद्गुणव्रतम्। भोगोपभोगसंख्यानमप्याहुस्तद्गुणव्रतम्।। 537. समतां प्रोषधविधि तथैवातिथिसंग्रहम्। मरणान्ते च संन्यासं प्राहुः शिक्षाव्रतान्यपि।। 538. स्था.सू. 5.1.1 539. आप्टे संस्कृत हिन्दी कोष पृ. 15 540. आ.पु. 10.163 541. त.सू. (के.मु.) 7.15 (वि.) 542. पंचधाऽणुव्रतं राज्यभक्तिः षष्ठमणुव्रतं 543. रतन. क. श्रा. 67. 544. आ.पु. 10.165 545. जै.द. (न्या. वि.श्री) पृ. 64 546. त.सू. (के.मु.) 7.16 (वि.) 547. जै.द. (न्या.वि.श्री.) पृ. 66 548. वि.सू. (ज्ञा. मु..) द्वि श्रुतस्कन्ध। पृ. 591 549. आ.पु. 20.162 550. त.सू. (के.मु.) 7.16 (वि.) 551. वही। 552. त.सू. (के.मु.) 7.16 (वि.) 553. स.सि. 7.21.362. 554. त.सू. - (के.मु.) 7.16 (वि.) 555. उपा.सू. (आ.आ.रा.जी.) पृ. 68 प्रस्ता.। 556. स्था.टी. (अभय सूरि टीका) पृ. 61 चारित्र सा. 13.3 सवार्थ सि. - 7.1
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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