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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
बन्धन मुक्ति ही बंधन मुक्त करें।
विजयचंद्र - "गुणवर्मा! क्या कहते हो! मुझ पर किये हुए आपके उपकार के सामने यह कार्य कुछ बड़ी बात नहीं । मैं इससे भी अधिक आपका कार्य करने के लिए तैयार हूं । परंतु इतनी बात है कि यह कार्य विशेषतः तुम्हारे खुद के ही स्वाधीन है। इसका कारण मैं आपको बतलाता हूं। आप सावधान होकर सुने।
___ "इस शहर के नजदीक जो यह एकशृंग नामक पर्वत दिखाई देता है इसकी गुफा में देवता अधिष्ठित एक सुगुप्त कूपिका है । उसका मुखद्वार नेत्र पुट के समान वारंवार विकसित होकर बंद होता है । उस कूपिका में से स्तंभित हुए मनुष्य का पुत्र पानी लेकर यदि अपने पिता पर तीन दफे छिड़के तो वह तुरंत ही बंधन मुक्त हो सकता है। परंतु यदि पानी ग्रहण करते हुए डर जाय तो पानी लेनेवाले की मृत्यु हो जाती है । गुणवर्मा! पिता को बंधन मुक्त करने के लिए इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है।
पितृभक्त, साहसिक, गुणवर्मा ने कहा - "महाराजा! मैं यह काम करके भी पिता को बंधन मुक्त करूंगा आप इस कार्य में मेरी सहायता करें।
गुणवर्मा की अलौकिक पितृभक्ति देख विजयचंद्र बहुत खुश हुआ । उपकारी पर प्रत्युपकार करने के लिए पानी ग्रहण करने की सर्व सामग्री को तैयार कर विजयचन्द्र गुणवर्मा को साथ ले उस कूपिका के पास गया । विकसित हुई उस कूपिका में पानी लेने के लिए विजय चंद्र की सहायता से मंचिका पर बैठ गुणवर्मा अंदर उतरकर निर्भयता से उसमें से जलपात्र भर गुणवर्मा ने रस्सा हिलाया, सावधान हो शीघ्रता से विजयचन्द्र ने गुणवर्मा को कूपिका में से ऊपर खींच लिया । मंत्र प्रभाव से सेवक रूप बने हुए राक्षस ने घोड़े का रूपधारण किया । उस पर सवार होकर दोनों जने क्षणमात्र में चंद्रावती पहुंचे । देवता अधिष्ठित लाया हुआ पानी गुणवर्मा द्वारा लोभाकर पर तीन वक्त छिड़कने से वह बंधन मुक्त हो गया । परंतु लोभानंदी अपुत्रीय होने के कारण पूर्ववत् ही दुःखित रहा। क्योंकि उस मंत्र के कल्प के अनुसार अपने पुत्र के सिवा अन्य किसी से उनका दुःख दूर होना असंभव था ।
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