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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
धर्म - प्रभाव चाहिए । जिस प्रकार वृक्ष की वृद्धि में और उसके शीघ्र फल देने में अनुकूल कारणों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार उग्र पुण्य और उग्र पाप वाले कर्मों का फल भी थोड़े ही समय में तीव्र मिलता है । ऐसे ही मंद परिणाम से किये हुए पाप वाले कर्मों का फल भी कालान्तर में सुख - दुःख नियमित रूप से मिलता
उपरोक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि जो पाप वृत्ति करने वाले प्रपंची मनुष्य इस समय सुखी देख पड़ते है और व्यवहार में सफलता प्राप्त करते हैं, यह उनके पूर्व कर्मों का फल है । उनका पूर्व कर्म जो इस समय पापाचरण करते हुए भी उन्हें सुख और सफलता दे रहा है वह शुभ था । इस समय के अशुभ कर्मों के फलों के बीच पूर्व के शुभ कर्मों का व्यवधान पड़ा हुआ है । यह व्यवधान या अंतर पूर्ण होने पर अर्थात् पूर्वकृत शुभ कर्म का फल समाप्त होने पर और वर्तमान काल के या पूर्वकाल के अशुभ कर्म उदय होने पर इस समय सुखी दिखाई देते मनुष्यों के तीव्र या मंद पाप परिणाम के प्रमाण में दुःख की न्यूनाधिकता अवश्य परिवर्तन हो जाती है।
क्रिया अच्छी हो या बुरी उसका फल अवश्य मिलता है । अच्छी क्रिया का अच्छा फल और खराब क्रिया का खराब फल प्राप्त होता है । इसको साबित करने के लिए अनेक दृष्टांत नजर के सामने मौजूद हैं इसलिए धर्म सत्य है और उसका फल अवश्य ही मिलता है । मनुष्यों के लिए धर्म की परमावश्यकता है और वह धर्म इस मनुष्य जिंदगी में ही प्राप्त हो सकता है । ज्यों छाछ में मक्खन, कीचड़ में से कमल, बांस में से मुक्तामणि सारभूत होने के कारण ग्रहण करने योग्य हैं, त्यों मनुष्य जन्म से सारभूत धर्म ग्रहण करने योग्य है।
दुर्गति में पड़ते प्राणियों को धारण करने वाला होने से और सद्गति प्राप्त कराने वाला अर्थात् जन्ममरण के भयंकर दुःखों से मुक्त कराने वाला होने के कारण यह धर्म कहलाता है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन तीनों में पूर्वोक्त