SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र मलयासुंदरी का उपदेश मलयासुंदरी का उपदेश यह महापुरुषों का अटल उपदेश है कि जो शुभ कार्य करने का विचार हो उसे आज ही कर लो और जो आज करना है उसे अभी करो । श्रेष्ठ विचार आने पर उसे आचार में लाने के लिए विलंब मत करो । शुभ कार्य में विलंब करने से उसमें विघ्न बाधा पड़ते देर नहीं लगती । यदि किसी कारण मन में बुरे विचार पैदा हुए हैं तो उन्हें आचार में लाने की शीघ्रता मत करो । विलंब करने से मनुष्य बुरे कर्म से बच सकता है। परंतु शुभ विचार को आचार में लाने के लिए आलस्य या विलंब करने से मनुष्य को किसी समय महान् पश्चात्ताप करना पड़ता है। प्रातःकाल होते ही उत्सुकतापूर्वक सकल परिवार को साथ लेकर शतबल राजा अपने पूज्य पिता और धर्म गुरु को वंदनार्थ उद्यान में आया । परंतु वहां पर वह महामुनि कहीं पर भी दिखायी न दिया । वनमाली के बतलाये मुजब जहां पर वह महामुनि कल संध्या समय ध्यानस्थ हो खड़ा था इस वक्त वहां पर राख का ढेर लगा पड़ा है। उस राख को देखने से मालूम हुआ कि उसमें किसी मनुष्य को जलाया गया है। खूब बारीकाई से तलाश करने पर यह साबित हो गया कि किसी दुष्ट ने उस महामुनि को ही जला दिया है । दुःखद समाचार सुनते ही धर्मप्रेमी पितृभक्त शतबलराजा अकस्मात् मूर्छा पाकर जमीन पर गिर पड़ा। यह देख मंत्री सामंतों के सभी दुःख का पार न रहा । शीतोपचार करने पर राजा होश में आया और पश्चात्ताप करते हुए बोल उठा - "अरे! भव भ्रमण से निर्भीक हो इस महामुनि को ऐसा घोर उपसर्ग किस दुष्टात्मा ने किया है? राख के पुंज पर दृष्टि पड़ने से पिता भक्त कोमल हृदय शतबल को फिर से मूर्छा ने दबा लिया। कुछ देर बाद सुध आने पर वह मुक्तकंठ से विलाप करने लगा। हा! हताश! शतबल! तूं इतना निर्भाग्य है! समीप आये हुए दुर्लभ पिता के चरणकमणों में नमस्कार तक भी न कर सका । इतना प्रमाद! हे पूज्यपिता! 238
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy