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वैराग्य और संयम
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
वैराग्य और संयम
महाबल राजा ने सागर तिलक की राजधानी पर अपने कुमार शतबल को स्थापित कर दिया और वहाँ पर अपने प्रधान सेनापति को रखकर एवं शतबल कुमार को साथ ले वह अपनी मुख्य राजधानी पृथ्वीस्थानपुर में आ रहा । वहाँ पर रहकर दुर्जय शत्रुओं पर जय प्राप्तकर निष्कंटक राज्य पालन करने लगा। ज्ञानीगुरुदेव महाराज के उपदेश से उसके हृदय में सदैव धर्म भावना जागृत रहती है, अतः व्यन्तर देव की सहाय से वह विशेष प्रकार से धर्म और प्रजा की उन्नति करने लगा । जहाँ पर धार्मिक, साधनों की आवश्यकता मालूम होती वहाँ पर राज्य की ओर से वे साधन तैयार कराये जाते थे।अनेक स्थानों पर राज्य की तरफ से दान शालायें खोली गयी । विशेषतः वह अपने पूर्वजन्म को यादकर मुनि महात्माओं की सेवा भक्ति करने लगा । गृहस्थधर्म को पालन करते हुए कुछ समय बाद मलयासुन्दरी ने अपने कुल की धूरा को धारण करनेवाले एक सद्गुणी पुत्र को जन्म दिया । जन्मोस्तव पूर्वक राजा महाबल ने उस दूसरे पुत्र का नाम सहस्रबल रख्या ।
__ संसार के प्रपंच में और पाँचों इन्द्रियों के विषय सुख में दिन, महीने या अनेक वर्ष बीतने पर भी मनुष्यों को कुछ मालूम नहीं होते । अनादि काल के लम्बे अभ्यास के कारण निरोगी आयुष्य और इष्ट विषयों की प्राप्ति मनुष्य को विशेष रुचिकर होती है । पूर्व जन्मान्तरों के संस्कारों से स्वाभाविक ही मनुष्य का मन वासनाओं की तरफ आकर्षित होता रहता है । परन्तु अनादि काल से भूले हुए आत्मस्वरूप को प्राप्त करने के लिए बिना किसी सत्पुरुष की प्रेरणा के स्वतः प्रयत्न करनेवाले भाग्यशाली कितने नजर आते हैं ? जिस तरह भूखे मनुष्य को स्वयं ही अपना खाद्य पदार्थ प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए । वैसे ही आत्मीय सुख की इच्छावाले मनुष्य को खुद धर्म की गवेषणा करनी चाहिए। परन्तु यदि पुण्योदय से बिना प्रयत्न किये ही धर्मोपदेशक का समागम मिल जाय तो उससे धर्म स्वरूप समझकर सच्चेसुख की प्राप्ति के लिए उसे सेवन करने में
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