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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
बार - बार उसे देखता हुआ वह वापिस समुद्र में चला गया ।
केवली - राजन् ! जाति स्मरण ज्ञान होने के बाद वह वेगवती का जीव निरन्तर निर्दोष आहार करता है और महामंत्र परमेष्ठीमंत्र का ध्यान स्मरण करता रहता है । वह अपने मच्छ भवसम्बन्धी आयुष्य को पूर्णकर पूर्वकृत कर्मों का पश्चात्ताप, महामंत्र नवकार का स्मरण और शुभ भाव की सहाय से देवगति को प्राप्त होगा । चंद्रयशाकेवली महात्मा के मुख से मलयासुन्दरी की धायमाता वेगवती का भवान्तर सुनकर राजा आदि तमाम मनुष्य आपस में बोलने लगे - "सचमुच ही उसने इस पशुभव में भी माता के शरीर का ही प्रेम बतलाया है। ऐसे तिर्यच के भव में भी वह अपने कर्तव्य को नहीं भूली ।
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सूरपाल 'भगवन् ! इस मेरे पुत्र महाबल और मलयासुन्दरी ने पूर्व जन्म में ऐसे क्या कर्म किये हैं कि जिनसे इन्हें ऐसे सुखसंपन्न कुल में पैदा होकर भी घोर दुःखों का अनुभव करना पड़ा ?
पूर्वभव वृत्तान्त
महात्मा "राजन् ! आप सावधान होकर सुनें मैं इनका पूर्वजन्म वृत्तान्त सुनाता हूँ । पृथ्वीस्थानपुर में पहले एक प्रियमित्र नामक जमीनदार रहता था । वह बड़ा समृद्धिवान था । परन्तु उसके पुत्रादि सन्तति न थी । प्रियमित्र के भद्रा, रुद्रा और प्रियसुन्दरी नामकी तीन स्त्रियाँ थीं । रुद्रा और भद्रा दोनों सगी बहनें थीं । अतः उन दोनों में परस्पर अच्छा प्रेमभाव रहता था । किन्तु प्रियमित्र का उन दोनों पर प्रेम न था । उसका प्रियसुन्दरी पर ही पूर्ण प्रेम था । बस इसी कारण प्रियमित्र और प्रियसुन्दरी के साथ रुद्रा एवं भद्रा का क्लेश रहता था । यह क्लेश उसके घर में निरन्तर होता था । प्रियमित्र का एक मदनप्रिय नामक मित्र था । वह प्रियसुन्दरी को प्रेम की नजर से देखता था । सदैव आनेजाने के विशेष परिचय से वह प्रियसुन्दरी पर आसक्त हो गया । हमेशा वह प्रियसुन्दरी के साथ बड़े प्रेम से वार्तालाप करता । एक दिन एकान्त में रही हुई प्रियसुन्दरी के रूप में मुग्ध होकर मदनप्रिय ने उसे अपनी विषय वासना पूरी करने का अभिप्राय जनाया । सुन्दरी का हृदय सरल और पवित्र था । वह पति पर पूर्ण प्रेम और भक्ति रखती थी, त्योंही उसके पति का भी उस पर अनन्य प्रेम था । सुन्दरी
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