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'श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
स्वजन - मिलाप दुःख याद आने पर उसका हृदय उसके स्वाधीन न रहा । उसके नेत्रों से अखण्ड अश्रुप्रवाह बहने लगा और वह फूटफूट कर रोने लगी । वह आप ही नहीं रोयी बल्कि अपने स्वजनों को भी उसने खूब रुलाया । अन्त में धैर्यधारणकर उसके पिता और स्वसुर ने उसे दिलासा देकर शान्त किया । पूछने पर मलयासुन्दरी और महाबल ने अपने पिता और स्वसुर को अपना अनुभव किया हुआ आज तक का समस्त वृत्तान्त कह सुनाया । मलयासुन्दरी के दुःख का वृत्तान्त सुनकर दोनों राजाओं के नेत्रों से अश्रु टपकने लगे । राजा शूरपाल के हृदय में अपनी की हुई भूल के पश्चात्ताप का पार न रहा। मलयासुन्दरी के सामने उसकी गरदन नीची हो गयी । पश्चात्ताप के दुःख से उसका हृदय गद्गद् हो गया । वह विनम्र भाव से बोल उठा - बेटी कुल वधु ! तुम तत्त्वज्ञा हो इस अविचारी शूरपाल को जो तुम्हारे सर्व दुःखों का कारण बना है क्षमा करो । देवी ! मैं तुम्हारे सामने मूर्ख
और अपराधी हूँ। राजा वीरधवल पुत्री के मस्तक पर हाथ फेर कर बोला - बेटी! तुमने बड़ा घोर दुःख सहा! राजकुल में पैदा होकर भी तुम निष्पुन्यक भिखारी के समान रुलती फिरी ! चंद्र किरणों के समान निर्दोष और गुलाब कुसुम के समान कोमलांगी पुत्री ! तूने किस तरह ऐसे घोर दुःख सहे होंगे ! इस प्रकार दुःखित हृदय से सबने मलयासुन्दरी के दुःख में शोक समवेदना प्रकट की।
स्नान भोजनकर फिर राज्य प्राप्ति के सम्बन्ध में बातचीत शुरु हुई। शूरपाल बोला - बेटा! तेरी सहन शक्ति अगाध है । तुमने कंदर्प पर बड़ा भारी अनुग्रह किया । परन्तु फिर भी वह दुष्ट तुम्हारे अनुग्रह से कुछ लाभ न उठा सका । बेटा ! तुम्हारा साहस, तुम्हारी तीक्ष्ण बुद्धि, तुम्हारा धैर्य और तुम पर प्रजा का जो असीम प्रेम है वह सब प्रशंसा के योग्य है । इत्यादि पुत्र के गुणों की अनुमोदना करते हुए राजा शूरपाल ने पूछा – बेटा ! जंगल में पैदा होनेवाला मलयासुन्दरी का वह पुत्र कहाँ ? पापी दुष्ट बलसार ने उसकी क्या व्यवस्था की है ?
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