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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
स्वजन मिलाप
का सामना करना मंजूर किया है तो अवश्य ही कुछ सोच - समझकर किया होगा ।
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सामने शत्रुसेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी है। एक तरफ काले पहाड़ों के समान हाथियों की पंक्ति लगी खड़ी है । सैनिक उत्साह पूर्वक शत्रु के आक्रमण की राह देख खड़े हैं । घोड़े हिनहिनाट कर रहे हैं । संग्राम के बाजे बज रहे हैं। सिद्धराज के सैनिकों में भी युद्ध का अदमनीय उत्साह भरा था । वे सिद्धराज जैसे सेनापति की अध्यक्षता में यमराज से भी युद्ध करने को उत्सुक थे । रणरंग हाथी पर बैठ और अपनी अदम्य उत्साह वाली छोटी- सी सेना को साथ ले महाबल शत्रुसेना के सन्मुख आ पहुँचा। दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हो गयी । भयंकर युद्ध छिड़ गया । समर भूमि की उड़ी हुई धूल से आकाश में बादल से छा गये । उस भीषण संग्राम से तलवारों की चमक बिजली की भाँति मालूम होती थी ।
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सिद्धराज को आगे बढ़ा देख विश्वालंकार हाथी पर बैठकर राजा शूरपाल और संग्रामतिलक नामा हाथी पर बैठ वीरधवल राजा आगे बढ़ आये और जी तोड़ कर लड़ने लगे। अपने स्वामियों को आगे बढ़ता देख दोनों सेनायें सिद्धराज की सेना पर टूट पड़ी । हाथीवाले के साथ हाथीवालों, घुड़सवारों के साथ घुड़सवारों और पदातियों के साथ पदातियों में घोर घमशान युद्ध मच गया । अनेक सुभटों के रूंडमुंड कटकर जमीन पर पड़ने लगे । सिद्धराज की सेना का संगठन टूट जाने से उसमें भगदड़ - सी मच गयी । उसके सैनिक परास्त होकर रणभूमि से भागने लगे । अपने सैनिकों को भागते देख और अपने बल से सामने का बल अजेय समझकर सिद्धराज ने अपने वशवर्ती व्यन्तर देव को याद किया। स्मरण करते ही व्यन्तर देव यहाँ पर आ पहुँचा । "मैं आपको इच्छित सहाय करूँगा, यों कहकर वह देव उसकी मदद करने लगा । अब सिद्धराज ने अपने सैन्य का उत्साह बढ़ाया और वह अपने हाथी परसे सामने की सेना पर विषम बाण वर्षा करने लगा। सिद्धराज का एक भी वार खाली न जाता था और देव सहायता के कारण सामने से आने वाले बाण निष्फल होते थे । व्यन्तर देव रास्ते
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