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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःखों का अन्त प्रदीप्त किया। अग्नि पूजन हुए बाद पहले हम प्रवेश करते हैं इत्यादि कथन पूर्वक सिद्धराज की मायाजाल में भरमाये हुए राजा और मंत्री पुत्र ने इच्छित सुख प्राप्त करने के संकल्प से अग्नि में प्रवेश किया । राजा के समान प्रबल इच्छावाले अनेक राजपुरुष राजा के पीछे जाने लगे परन्तु राजा और मंत्री को वापिस आने दो फिर जाना यों कहकर सिद्धराज ने उन्हें वहाँ ही रोक लिया। महाबल के आदेश से वे सब वहाँ खड़े रहे क्योंकि उसके गुणों से महाबल पर तमाम प्रजा के हृदय में पूर्ण प्रेम और भक्तिभाव था । राजा और मंत्री को बहुत देर हो गयी परंतु वे वापिस न लौटे, तब राजपुरुष बोले - क्या बात है ? इतनी देर होने पर भी महाराज और मंत्रीजी वापिस नहीं आये? महाबल - क्या कभी अग्नि में गया हुआ भी कोई वापिस आया करता है ? मैं तो व्यन्तर देव की सहाय से अग्नि में न जलकर बाहर निकल आया हुँ। यह सुनकर जनता समझ गयी कि राजा और पुत्र सहित मंत्री के पाप का घड़ा फूट गया । सिद्धराज ने अच्छे उपाय से बदला लिया। उनके प्रत्यक्ष में अन्याय के कारण राजा आदि की मृत्यु के शोक में प्रजाकीय किसी भी मनुष्य ने शोक सहानुभूति न बतलायी। राजा की मृत्यु से समस्त राजकीय प्रधान पुरुष मिलकर विचार करने लगे कि अब राज्य की क्या व्यवस्था करनी चाहिए ? राजा के एक भी ऐसा लायक पुत्र नहीं जो राज्य की धुरा को धारण कर सके । अधिक जनता की सम्मति सिद्धराज को ही राज्य भार सौंपने की हुई । प्रजा बहुमत से बोली – सिद्धराज सब तरह से राज्य की धुरा धारण करने में समर्थ है । वह गुणवान तथा सामर्थ्यवान है इतना ही नहीं बल्कि देवता भी उसका सहायक है । ऐसा पुरुष राज्य के लिए मिलना मुश्किल है । प्रजा मत के साथ सबकी सहानुभूति होने से बड़े समारोह के साथ महाबल का राज्याभिषेक किया गया । मलयासुन्दरी पटरानी के पद पर आरुढ़ हुई । महासंकटो में पाला हुआ उसका शीलव्रत सफल हो गया । अब सदा के लिए उसका वियोग नष्ट हो गया । अपने दुःखों का अन्त कर महाबल भी सुख से प्रजा - पालन करने लगा। उसने अपने सद्गुणों और 192
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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