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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र निर्वासित जीवन कनकवती को उसने तुरंत ही देश निकाले की शिक्षा दी । परंतु इससे महाबल की दुःखित आत्मा को क्या शांति मिल सकती थी? पूरे दिन की गर्भवती और निर्दोष पत्नी के ऐसे अनिष्ट भविष्य को महाबल के शोक या दुःख का पार न रहा, उसका हृदय पराधीन बन गया । उसने मन को मसोसकर किसीसे बोलने तथा भोजन करने का त्याग कर दिया । उसके नेत्रों से रह रहकर सावन भादों के वर्षा की भांति आंसुओं की झड़ी लग गयी । विशेष क्या कहें वह अपनी निर्दोष प्रिया के वियोग से फकीर बनकर मरने के लिए तैयार हो गया । सचमुच ही मोह के उदय में मनुष्यों के अंतर नेत्रों पर पड़दा पड़ जाता है । राजकुमार को मृत्यु के लिए उत्सुक देख राजा और रानी भी वैसी ही दुःखद अवस्था का अनुभव करने लगे । इस समय राजकुल में ही नहीं बल्कि सारे नगर में शोक उदासीनता का साम्राज्य छाया हुआ था । दीर्घ निश्वास के सिवा किसी के मुंह से और कोई शब्द न निकलता था।
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दैववशात् इस समय कहीं से फिरता हुआ वहां पर एक निमित्तज्ञ पुरुष आ पहुंचा । मालूम होने से उसे राजसभा में बुलाया गया । उसके हाथ में एक अष्टांग निमित्त की पुस्तक थी । प्रधान मंत्री ने उसका आदर सत्कारकर उसे उचित आसन पर बैठाया ।
प्रधान - निमित्तज्ञ महाशय ! महाबल कुमार की पत्नी मलयासुंदरी निर्दोष होने पर भी एक स्त्री के प्रपंच से निकाल दी गयी है । इसी कारण आज हम उसके वियोग से दुःखित हो शोक सागर में डूब रहे हैं । इसका परिणाम हमें बहुत भयंकर मालूम होता है । इसीलिए यदि आपके निमित्त बल से आप यह बतला सकते हैं कि वह कुमार की पत्नी किसी जगह जीवित है या नहीं। तो कृपया बतलाकर हम पर उपकार करें । प्रश्नकुंडली बनाकर और उसे अच्छी तरह देख निमित्तज्ञ बोला - महाशयजी ! राजकुमार की पत्नी जीवित है और वह एक वर्ष के बाद कुमार को अवश्य मिलेगी । मलयासुंदरी जीवित है यह अमृत के समान वचन सुनकर, पुनर्जन्म सा प्राप्तकर, कुमार एकदम बोल उठा पंडितजी! विलंब न कीजिये, आप मुझे कृपया शीघ्र बतलाइए कि वह इस समय
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