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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सुख के दिन को जल्दी जाकर सांत्वना दूं । इनके सुख समाचार की बधाई देकर उनके हृदय को आनंदित करूं । महाराज शूरपाल - कुमार! तुम्हारे विनयादि सद्गुणों के कारण तुम्हें विदा करने के लिए मेरा मन नहीं मानता तथापि तुम्हारे बतलाये हुए कारण से विवश होकर मैं तुम्हें इसी वक्त चंद्रावती जाने की आज्ञा देता हूं । तुम्हारे पिता से जाकर कहना, हमारा और उनका बहुत समय से प्रेम संबंध चला आ रहा है। अब इस रिश्ते के कारण वह और भी दृढ़तापूर्वक वृद्धि को प्राप्त हो गया । मलयकेतु बोला महाराज! जरूर कहूंगा और ऐसा ही होगा। इस प्रकार राजा की आज्ञा ले मलयकेतु ने अपनी बहन और बहनोई से जाने की आज्ञा मांगी । महाबल बोला - 'मेरी तरफ से मेरी सासू और श्वशुरजी को नमस्कार पूर्वक कहना कि आपकी आज्ञा लिये सिवाय आपके कन्या रत्न को लेकर चले आने से चोर का आचरण करनेवाले महाबल ने तुम्हें महान् दुःख दिया है । उस अपराध की वह आप से वारंवार क्षमा चाहता है । और आपके इस दुःख का किसी स्वार्थ वश नहीं किन्तु दैववशात् पराधीनता से ही मैं हेतु बना हूं। मलयासुंदरी - बड़े भैया! दैवाधीनता के कारण ही हमारा यहां अकस्मात् आना हुआ है। यह बात माता पिता से जरूर कहना । अब वे मेरी तरफ से किसी प्रकार की चिंता न करें । मैं यहां पर सब तरह से महान् सुख में हूं। मेरे निमित्त से पैदा हुए माता पिता के दुःख के लिए तुम मेरी तरफ से क्षमा याचना करना और उनके चरण छूकर मेरा बार - बार नमस्कार कहना । मलयकेतु कुमार ने उन तमाम संदेशों को स्नेहपूर्वक स्वीकार कर बहन बहनोई के वियोग से उत्पन्न हुए दुःख को अश्रु धारा से शांतकर चंद्रावती की तरफ प्रयाण कर दिया । थोड़े ही दिनों में चंद्रावती में आकार उसने जमाई और पुत्री के सुख समाचार की माता पिता को बधाई दी और शोक चिंता दूर कराकर उसने सबको आनंदित किया । __सांसारिक आनंद से सुख शांति प्राप्त किये दंपती एक रोज महल की खिड़की में बैठे हुए पुण्य की प्रबलता, कर्मों की विचित्रता और पाप की विषमता 137
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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