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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा है । मैं धैर्यवान् था तथापि देव - वाक्य मिथ्या नहीं होता यह जानकर क्षोभित हुआ।
कांपती हुई स्त्री मेरे स्कंधों से नीचे उतरी, उसने मेरा नाम स्थान पूछा, मैंने भी अपना नाम स्थान सत्य बतला दिया। इससे उसे मुझपर कुछ विशेष विश्वास हुआ हो यह मालूम हुआ । जाते समय वह स्त्री मुझसे बोली; कुमार! जब मेरी नासिका अच्छी हो जायगी तब मैं आपके पास आकर इस चोर का गुफा में दबाया हुआ धनादि बतलाऊँगी । उसके चले जाने पर मन को दृढ़कर मैं वटवृक्ष पर चढ़ा । चोर के मुरदे को बंधन से छोड़कर जमीन पर गिराकर मैं नीचे उतरा । परंतु इतने ही मैं वह मुरदा उछलकर फिर वापिस शाखा से जा बंधा । मुझे फिर से वटवृक्ष पर चढ़ना पड़ा । मैं समझ गया कि यह कुछ दैवी चमत्कार है, अन्यथा जमीन पर पड़ा हुआ मुरदा स्वयं उठकर ऊपर नहीं जा सकता । ऐसी परिस्थिति में इस मुरदे को योगी के पास किस तरह ले जाया जा सकता है? मैंने एक उपाय सोचकर उस मृतक को बंधन से छोड़ उसके केशों को पकड़कर मैं उसके साथ ही नीचे उतरा और उसे पीठपर लादकर, योगी के पास लाकर रख दिया । ___ महाबल कुमार की विचित्र घटना सुनते हुए श्रोताओं को कभी आश्चर्य, कभी शोक, कभी हास्य, कभी भय से कंपन, कभी आनंद और कभी दुःख का अनुभव होता था । इस तरह अनेक रस का अनुभव करते हुए लोगों को आगे क्या हुआ होगा; यह जानने के लिए एकाग्रमन से उत्सुकता हो रही थी। महाबल बोला – 'पिताजी! योगी ने उस मुरदे को स्नान कराकर चंदनादि के रस से उसका विलेपन किया। फिर एक बड़ा अग्निकुंड बनाकर उसमें अंगारे दहकाकर उसके पास उस मुर्दे को रख मुझे उत्तर साधक के तौर पर खड़ा रखा । इधर योगी ने पद्मासन लगाकर, आँखें मीच एकाग्र चित्त से जाप जपना शुरु किया । जाप जपते हुए सुबह होने आयी परंतु वह मृतक मंत्रप्रभाव से उठकर अग्निकुंड में न पड़ा। यह देख निराश हो योगी जाप जपने में शिथिल हो गया । इतने ही में वह मुरदा भयंकर अट्टहास्य करता हुआ आकाशमार्ग से उड़कर पहले के जैसे उसी वटवृक्ष
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