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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा चेहरे पर प्रसन्नता सी झलक उठी। अब वह माता - पिता के आग्रह से अपना विचित्र वृत्तांत सुनाने लगा। उस दिन मध्यरात्रि के समय महल में एक हाथ देखने में आया था, वहां से लेकर आधीरात को मलयासुंदरी को केलों के बगीचे में अकेली छोड़ एक औरत के रोने का शब्द सुन उसका कष्ट दूर करने की भावना से उस शब्द के अनुसार जंगल में गया था, वहां तक का सर्ववृत्तांत कह सुनाया । रुदन करती स्त्री के शब्दानुसार आगे जाते हुए मंत्रसाधन करने की सर्व तैयारी किये बैठा हुआ मुझे एक योगी देखने में आया । मुझे देखकर उसने अपना काम छोड़ दिया और सन्मान देकर विनयपूर्वक वह मेरे पास याचना करने लगा कि हे कुमार! आप परोपकार करने में प्रवीण है। मेरे पुण्योदय से ही आप इस समय अकस्मात् यहां आ पहुंचे हैं। मैंने एक महामंत्र सिद्ध करना प्रारंभ किया है । वह मंत्र सिद्ध होने पर सुवर्ण पुरुष की सिद्धि होगी। मैंने सर्व सामग्री तैयार कर रखी है। परंतु उत्तर साधक के अभाव से अटक रहा हूं । इसीलिए कुछ देर के वास्ते आप मेरे पास रहकर उत्तर साधक बनें, जिससे आपकी सहायता से मेरी मंत्रसिद्धि हो। पिताजी! योगी की प्रार्थना से मुझे दया आ गयी । इसीलिए उसकी प्रार्थना मंजूरकर और उसके कथनानुसार हाथ में खड्ग लेकर मैं उसका उत्तर साधक बना । योगी ने कहा - 'हे वीर पुरुष! जहां पर यह स्त्री रुदन कर रही है उस वटवृक्ष की शाखा से बंधा हुआ अक्षतांग वाला एक चोर का मृतक है । उसे आप जहां ले आवें । मैं तलवार हाथ में लिये वटवृक्ष के नीचे पहुंचा । वहां चोर के मुरदे के नीचे जमीन पर बैठी हुई रुदन करती मुझे एक स्त्री देखने में आयी । मैंने उससे पूछा - 'भद्रे! तूं कौन है? किस लिए करुण स्वर से रुदन करती है? और ऐसी भयंकर रात्रि में तुझे एकाकी स्मशान में आने का क्या कारण है?' मेरी बात सुनकर वह निश्चल दृष्टि से मेरे सन्मुख देखती हुई बोली - सत् पुरुष! मैं मंदभाग्या अपने दुःख की तुम्हें क्या बात सुनाऊँ? इस बड़ की शाखा से जो पुरुष लटकाया हुआ है वह अलंब पर्वत की गुफा में रहनेवाला और नगर को 126
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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