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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर से बाहर आ गयी। मुझसे मगधा ने पूछा - "सत्पुरुष! मेरे घर से बाहर निकालने का उसके लिए कोई उपाय किया? मैंने उत्तर दिया - भद्रे! तेरी प्रार्थना से मैंने ऐसा उपाय किया है अगर तूं उसे जाने से रोकेगी भी तथापि अब यह तेरे घर में न रहेगी। हर्षित हो मगधा वेश्या ने मेरे लिये भोजन तैयार किया। इधर कनकवती की बतलायी हुई निशानी के अनुसार मैंने दिन में वहां जाकर बहुत ही तलाश की परंतु मुझे हार का पता न लगा, इसलिए वापिस मगधा के घर आकर मैंने कनकवती से कहा कि मुझे ढूंढने पर भी वहां हार नहीं मिला। अतः रात को हार लेकर तुम गोला नदी के किनारे पर भट्टारिकादेवी के मंदिर में मुझे आ मिलो । यों कहकर मगधा से विदा हो मैं वहां से अपने सांकेतिक स्थान की तरफ चल पड़ी । परंतु मैं रास्ते में यहां आने का मार्ग भूल जाने के कारण उन्मार्ग से चलकर पुण्ययोग से उस बड़ के नीचे आपसे आ मिली। अब मलयासुंदरी ने अपनी धायमाता की तरफ नजरकर इसके आगे का वृत्तांत कहना प्रारंभ किया । क्योंकि महाबल तो उस वृत्तांत को जानता ही था! वेगवती! मैंने अपने स्वामी से आकर तुरंत ही यह बात कही कि आपको अपना पति बनाने के लिए कनकवती लक्ष्मीपुंज हार लेकर अभी आनेवाली है। मेरे स्वामी ने उत्तर दिया, प्रिये! यह तुम क्या बात कहती हो? ऐसी नीच औरत के साथ बात करना भी मेरे लिये उचित नहीं तब फिर उसे पत्नी बनाने की तो बात ही क्या? यों कहकर कनकवती को दूर से आती देख ये वहां से उठकर मंदिर के दूसरी तरफ छिपकर खड़े हो गये । कनकवती आ पहुंची, मैंने उसे प्रेम से बुलाया और कहा - 'भद्रे! इस समय बोलचाल किये सिवामौन रहकर खड़ी रहो' क्योंकि यहां पर चोर फिर रहे हैं । तेरे पास जो कुछ वस्तु हो वह मुझे सौंपदे । जिसको मैं हिफाजत से सुरक्षित रखू । उसे मुझ पर विश्वास तो था ही अतः उसने अपने पास का सब कुछ मुझे दे दिया। मैंने उस पोटली को देखकर उसमें से लक्ष्मीपूंज हार और एक कंचुक निकाल लिया । शेष तमाम 108
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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