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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर स्नेहभरी दृष्टि से देखते हुए उत्तर दिया-'पिताजी! जिसकी कृपा से मैं जीवित रही हूँ वह कुलदेवी ही इस बात को जानती है।" कुमारी को पहले के समान ही बोलती हुई देख तमाम राजकुटुंब उसके पास आकर प्रेम गर्भित शब्दों में कहने लगा – 'कुमारी! हम तुम्हें याद ही करते थे कि क्या हम इन नेत्रों से अब फिर तुम्हारा दर्शन कर सकेंगे? आज अकस्मात् ही आशा लगाये हुए चातक को शांति देनेवाले मेघ के समान तुम्हारा दर्शन बड़े पुण्य से प्राप्त हुआ है। __चंपकमाला – (हर्ष के अश्रु पूर्णनेत्रों से) 'प्यारी पुत्री! मैं तुम्हारी माता होने पर भी सचमुच इस समय वैरन के समान निकली । बेटी! ऐसा घोर दुःख तुमने कैसे सहन किया होगा? निर्दोष पुत्री! अपने अज्ञानी माता - पिता के इस घोर अपराध को क्षमा करना ।" राजा – "विनीत पुत्री! तुझे अंधकूप में पड़ते ही हमारी कुलदेवी ने अधर धारणकर अपने पास रखी होगी, तुझे योग्य वर की प्राप्ति हो इस हेतु से राजकुमारों के बल की परीक्षा के लिए इस स्तंभ में रखी हो ऐसा मालूम होता है। कनकवती के पास ये यह लक्ष्मीपूंज हार वापिस लेकर तेरे गले में पहना, दिव्य वस्त्रों से शृंगारितकर हाथ में वरमाला देने पूर्वक उस कुलदेवी ने ही तुझे विभूषित किया मालूम होता है । बेटी! जिस काष्टस्तंभ के भीतर से तूं प्रकट हुई है यह दिव्य स्तंभ इस पाणिग्रहण महोत्सव के प्रसंग पर हमें आज ही प्राप्त हुआ है। यह तमाम वृत्तांत हमें एक सिद्धज्योतिषी ने बतलाया था, परंतु हमारे कुल की रक्षा करनेवाली कुलदेवी ने हमें आज तक कभी स्वप्न में भी यह बात नहीं बतायी । न जाने इसका क्या कारण होगा? कादचित् संभव है उस सिद्ध ज्योतिषी के रूप में ही कुलदेवी ने हमारी सहाय की हो। मंत्री! सिद्ध ज्योतिषी की तमाम बातें सिद्ध ही हुई । परंतु एक ही बात मेरे हृदय में खटकती है । उसने कहा था - 'राजकुमारी का पाणिग्रहण महाराज शूरपाल का पुत्र महाबल कुमार करेगा यही बात अन्यथा प्रतीत होती है। हमारी 98
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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