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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर अपने परिवार सहित चंद्रावती में आने लगे । महाराज वीरधवल ने भी उन सबको सन्मानपूर्वक पृथक् - पृथक् ठहरने के स्थान समर्पण किये । सिद्धज्योतिषी ने राजा से कहा - "राजन्! मुझे एक मंत्र साधना है, वह आधा तो सिद्ध हो चुका है, परंतु आधा सिद्ध करना बाकी रहा है । यदि वह शेष रहा हुआ मंत्र आज रात को सिद्ध न किया जाय तो मेरा कार्य सिद्ध होना असंभवित है, इसलिए उस मंत्र को सिद्ध करने के वास्ते आज की रात मुझे आपकी आज्ञा मिलनी चाहिए । प्रातःकाल होते ही मैं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा। राजा ने खुश होकर सिद्धज्योतिषी को शेष मंत्र साधने की आज्ञा देखकर कहा - "मंत्र साधन के लिए जो कुछ उपयोगी वस्तु या द्रव्य की आवश्यकता हो सो जरुर साथ लेते जाइए । राजा के कहने से थोड़ा सा द्रव्य साथ ले सूर्यास्त होते ही सिद्ध ज्योतिषी वहां से बाहर निकल गया । अब उसके गये बाद आशा निराशा जनक अनेक प्रकार की विचारतरंगों में गोता खाते हुए राजा ने बड़े कष्ट से रात बितायी। प्रातःकाल में शहर के द्वार खुलते ही सिद्धज्योतिषी राजमहल में महाराज वीरधवल से आ मिला । उसे देखकर महाराज वीरधवल के हर्ष का पार न रहा और वह उत्सुकता पूर्वक बोल उठा - "महानुभाव! ज्ञानी! तुम्हारा मंत्र सिद्ध हो गया?" सिद्धज्योतिषी बोला – “महाराज! वह कोई साधारण मंत्र नहीं है । बड़ा दुःसाध्य है । उसका बहुत सा अंश तो सिद्धकर आया हूं, परंतु कुछ हिस्सा सिद्ध करना बाकी रहा है । मैं कल संध्या समय आपको प्रातःकाल आने का वचन दे गया था, इसी कारण और आप अधीर न हों इसीलिए मुझे दूसरे काम की परवा न करके आपकी सेवा में उपस्थित होना पड़ा । अब स्तंभ का अर्चनविधि कर शेष रहे मंत्र की सिद्धि के लिए मुझे वापिस जाना पड़ेगा । यह सुनकर प्रसन्न हो महाराज वीरधवल मुक्तकंठ से सिद्ध ज्योतिषी की प्रशंसा करने लगा और मन ही मन विचारने लगा 'अहो! बेचारा सिद्धज्योतिषी कैसा परोपकारी है? सचमुच ही ऐसे ज्ञानवान परोपकारी मनुष्य अपने कथन किये वचन को पालन करने में बड़े तत्पर होते हैं, दूसरे के कार्य के वास्ते निष्कारण
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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