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. [श्रीउत्तराध्ययनसूत्र
एगन्तरत्ते रुइरंसि रसे, .. प्रतालिसे से कुणई पोसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले,
न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५।। रसाणुगासाणुगए य जीवे,
चराचरे हिंसइऽणेगरूवे, । चित्तेहि ते परितावेद बाले, - पीलेह अत्तगुरू किलिडे ।। ६६ ।। रसाणुवारण परिरहेण,
.. उप्पायणे रक्खणसन्निोगे! वर विओगे य कहं सुहं से, . संमोकाले य अतित्तलामे ? ॥ ६७ ॥ रसे अतित्त य परिग्गह म्मि,
सत्तोषसत्तो न उवेइ तुर्हि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स,
लोलाविले प्राययई अदत्तं ॥ ६८॥ तपणाभिभूयस्स अदत्तहारिणो,
.. रसे अदत्तम्स परिग्गहे य । मायामुसं वडइ लोभदोसा,
तत्थावि दुक्खा न विमुञ्चई से ॥६९॥ मोसस्स पच्छा य पुरस्थ ओ य,
पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाय यन्तो, .
रसे ऋतित्तो दुहितो अणिस्सो।। ७० ॥ रसाणुरत्तम्स नरस्स एवं,
कत्तो सुहं होज कयाकिंचि ?