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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ]
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सद्दे, अप्पभंभे, अप्पकल हे अप्पकस. ए. अप्पतुमतुमे, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिए यावि भवइ ॥ ३६ ॥
भत्तपच्चक्खाणेण भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? भ० गाई भवसयाई निरुम्भइ ॥ ४० ॥
सब्भावपच्चक्खाणें भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? स० श्रनिंयहिं जगइ | अनियट्टि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलीकम्प्रेसे खत्रेइ तं जहा - वेयणिज आउयं नामं गोये || तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ जाव सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ४१ ॥
पडियाए भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? प० लाघवियं जणयइ । लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडर्लिंगे पसत्थलिंगे त्रिसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमते सव्वपाणभूय जीवसत्तेसु वीससजिरूवे अन डिलेहे जिइन्दिए विउलतवस मिइसम - नागए यावि भवइ ॥ ४२ ॥
वेयावच्चणं भन्ते ! जीवे किं जगह ? वे तित्थयरनान-.. गोत्तं कम्मं निबन्धइ ।। ४९ ।।
सव्वगुणसंपन्नया . भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? सर्व अपुणरावतिं जणय । श्रपुणरावत्ति पत्तर य णं जीवे सारीरमाणसाण दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ ४४ ॥
वीरागयाए णं भन्ते ! जीवे किं जण्यइ ? वी० नेहारपुरन्धणाणि तरह!णुबन्धणाणि य. वोच्छिन्दइ, प्रणुन्ना मरणुन्नेसु सफरिसरूवर सगन्धेसु चेव विरजइ ॥ ४५ ॥
१. नियहिं । २ - सुनिता चित्तमीस सु ।