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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ]
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निःgयहियर ओहरियभरुव भारवहे 'पसत्थज्भाणोवगए सुहं सुहेां विहरइ ॥ १२ ॥
पच्चक्खाणें भन्ते जीवे किं जणयइ ? पश्चक्खा रोग श्रसवदाराई निरुम्भइ । पच्चक्खाणं इच्छा निरोहं जणयइ । इच्छा निरोहं गए य ां जीवे सय्यदव्वेसु विणीयतराहे सीइभूप विहरइ ॥ १३ ॥
थवथुइ मंगले भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? थ० नागदंसणचरित्त बोहिलाभं जणयइ | नादंसणच रित्तोहिलाभसंपन्ने य गं जीवे अन्त किरियं कन्यविमाणववत्तिगं श्रार. हणं श्राराहेइ ॥ १४ ॥
काल पडिले हराय ए ग भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कालपडिलेहण्याप णाणावर णिजं कम्मं खवेइ ॥ १५ ॥
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पायच्छित्तकरणें भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? पा० पावविसोहिं जणयइ, निरइयारे वावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ, श्रयारं च ग्रागारफलं च राइ || १६ ||
खमावण्याए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ । मित्तीभावमुवगए य जीवे भावविसोहिं काऊण निभए भवइ ॥ १७ ॥
सज्झाएण भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? स० णाणावर णिज्जं कम्मं खबेइ ॥ १८ ॥
१. धम्मन o |