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________________ बवाई सूतं एयारुवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूई वासाई सेसं तं चैव जाव चउस िवाससहस्साई ठिई ६८ पण्णत्ता ॥ ८॥ से जे इमे गामागर जाव सन्निवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा - दगबिइया द्गतइया द्गसत्तमा दग एक्कारसमागोयमा गोव्वइया गिहिधम्मा धम्मचिंतगा अविरुद्धविरुद्धबुड्ढसावगप्पभितयो तेसिं मणुयाणं णो कप्पइ इमात्र नव रसविगईयो आहारत्तए, तं जहा - खीरं दहिं णवणीयं सपि तेल्लं फाणियं महुं मज्जं मंसं, णो रणरणत्थ एक्काए सरिसवविगईए, ते णं मणुया अपिच्छा तं चेव सव्वं णवरं चउरासीस वाससहस्साइं ठिई परण त्ता ॥ ६ ॥ से जे इमे गंगाकुलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा - होत्तिया पोतिया कोतिया जगणई सड्ढई थालई हुंप उठ्ठा दंतुक्ख लिया उम्मजगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपखाला दक्खिणकूला उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधमगा मिगलुद्धगा हत्थितावसा उद्दंडगा दिसापोक्खिणो वाकवासिणो अंबुवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो वेलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खि
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
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