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________________ वाई सूतं ६२ सिम्म हट्ठतु जाब हियए उठेइ उठाए उठ्ठिन्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिणं पयाहिणं करेइ २ ता वंदइ एमंसइ वंदित्ता एमंसित्ता एवं वयासी - "सुक्खाए ते भंते! निग्गन्थे पावयणे जाव किमंग पुए एत्तो उत्तरतरं ?,” एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए ॥ ( सू० ३७ ) तए णं ताओ सुभद्दापमुहात्रो देवी समणस्स भगवत्र महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा एिसम्म हट्टतुट्ट जाव हिययाओ उठाए उत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिणं पयाणिणं करेंति २ त्ता वंदति णमंसंति वंदिता मंसित्ता एवं वयासी - सुयक्खाए णं भंते! निग्गंथे पावणे जाव किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ?,” एवंवदित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूयात्रो तामेव दिसिं पडिदयाओ । ( समोसरणं समत्तं ) ॥ ( सू० ३८ ) तेणं कालेणं तेणं समएणं समस्स भगवो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठा
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
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