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________________ ४४ उत्रवाई सूत्तं द्धसज्जं सच्छत्तं सज्झयं सघंटे सपडागं पंचामेलयपरिमंडियाभिरामं श्रोसारियजमलजुयलघंट विज्जुपणद्धव कालमेहं उप्पाइयपव्वयं व चंकमंतं मत्त [ ] गुलगुलंतं मणपवणजइणवेगं भीमं संगा'मियाअोग्ग प्राभिसेकंहत्थिरयणं पडिकप्पइ पडिक त्ता हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं रू एणाहेइ सरणाहित्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छह उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ॥ . तए णं से वलवाउए जाणसालियं सदावेइ २ प्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवठ्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएक्काइं जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उघवेह २ त्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि । - तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयम8 प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ २ त्ता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता जाणाई पच्चुवेक्खेइ २त्ता जाणाई संपमज्जेइ २ ता जाणाई संवट्टेइ २ त्ता जाणाइं पीणेइ २ त्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ २ त्ता जाणाइं समलंकरेइ २ ता जाणाई वरभंडगमंडियाइं करेइ २त्ता जेणेव चाहणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता [ ] वाह
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
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