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________________ १०४ उववाई सूत्तं जं देवाणं सोक्खं सम्बद्धापिंडियं अणंतगुणं । ण य पावइ मुत्तिसुहं णंताहिं वग्गवग्गूहि ॥ १४॥ सिद्धस्स सुहो रासो सव्वद्धापिंडिओ जइ हवेजा। सोणंतवग्गभइनो सव्वागासे ण माएजा ॥ १५ ॥ जह णाम कोइ मिच्छोणगरगुणे वहुविहेवियाणंतो। ण चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए ॥ १६ ॥ इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमंणत्थि तस्स प्रोवम्म। किंचि विसेसेणेत्तोप्रोवम्ममिणं सुणह वोच्छ॥१७॥ जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई। तण्हाळुहाविमुको अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥१८॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥ १६ ॥ सिद्धत्ति य कुद्धत्ति य पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य ॥२०॥ णिच्छिण्णसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का । अव्वाबाहं सुक्खं अणुहोंती सासयं सिद्धा ॥ २१ ॥ अतुलसुहसागरगया अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता । सव्वमणागयमद्धचिठ्ठति सुही सुहं पत्ता ।। २२ ॥ ® उववाइ उवंगं समत्तं छ . भं भवतु। . .
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
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