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[१३] सव्व बहु अग्गणि जीवा निरंतरं जत्तियं भरिजंसु॥ खित्तं सव्वदिसांग परमोही खेत्तनिदिहे॥२॥ अंगुलमावलियाणं भाग मसंखिज्ज दोसु संखिज्जा ॥ अंगुलमावलिअंतो आवलिआ अंगुल पुहत्तं ॥ ३ ॥ इत्थंमि मुहुत्तंतो, दिवसंतो गाउअमि बोद्धयो॥ जोयण दिवसपुहुत्तं, पक्खंतो पन्नवीसाओ ॥४॥ भरहमि अद्धमासो, जम्बुद्दीवंमि साहिओ मासो॥ वासं च मणुअ लोए, वासपुहुत्तं च रुअगंमि ॥५॥ संखिळमिउकाले, दीव समुद्दाऽविहुंति संखिज्जा ॥ कालंमि असंखजा, दीवसमुद्दाउ भइअव्वा ॥ ६ ॥ काले चउण्हवुड्ढी, कालो भइअब्व खित्त वुड्ढीए॥ बुड्ढीए दव्वपजव, भइअव्व खित्त कालाउ ॥७॥ सुहुमोअ होइ कालो, तत्तो सुहमयरं हवइ खित्तं ॥ अंगुल सेढि मित्ते, ओसप्पिणि ओ असंखिजा ॥८॥ सेत्तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं । सेकितं ह्रीयमाणयं ओहिनाणं । हीयमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहि अज्झवसाणहाणेहि वड्ढमाणस्स वड्ढमाणचरित्तस्स संकिलिस्स माणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सव्वओ समन्ता ओहि परिहायइ सेत्तं हीयमाणयं ओहि