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७४ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन १९) सव्वभवेसु अस्माया, वेयणा वेदितो मए । निमेसंतरमित्त पि ज साता नत्थि वेयणा ।। ७४ ।। तं बिंतम्मापियरो, छ देणं पुत्त पव्वया । नवर पुण सामण्णे, दुक्ख निप्पडिकम्मया ॥ ७५ ॥ से बेइ अम्मापियरो. एवमेय जहा फुड । पडिकम को कुणइ, अरण्णे मियपक्खिणं ॥ ७६ ।। एगभूए अरण्णे व. जहा उ चरई मिगे । एवं धम्म चरिस्सामि, स जमेण तवेण य ।। ७७ ।। जया मिगरस आय को, महारण्णम्मि जाई । अञ्चत रुक्खमूलम्मि, को ण ताहे तिगिन्छई ॥ ७८ ।। को वा से ओसह देइ, को वा से पुच्छई सुहं । को से भत्तं च पाण वा, आहरित्तु पणामए ॥ ७९ ॥ जया य से सुही होइ, तया गच्छइ गोयर। . भत्तपाणस्स अट्ठाए, वल्लराणि सराणि य ॥ ८० ॥ खाइत्ता पाणिय पाउ, वल्लरेहिं सरेहि य । मिगचारियं चरित्ताण, गच्छई मिगचारियं ॥ ८१ ॥ एवं समुट्टिओ भिक्खू, एवमेव अणेगए । मिगचारिय चरित्ताण', उड्ढ पक्कमई दिस ॥ ८२ ।। जहा मिए एग अणेगचोरी, अणेगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरिय पविटे, ना हीलए ना वि य
खिसएन्जा ।। ८३ ॥ मिगचारिय चरिस्सामि, एवं पुत्ता जहासुह।