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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन १९ )
चव व आहारे, राईभायणवज्जणा | सन्निही संचओ चैव वज्जेयव्वा सुदुक्कर ।। ३० ।। छुहा तहा य सीउन्ह, द समसगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेज्जा य, तणफासा जल्लमेव य ॥ ३१ ॥ तालणा तज्जणा चेव, वहब'धपरीसहा
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दुक्ख भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥ ३२ ॥ कावेाया जा इमा वित्ती, केसले ओ य दारुणा । दुक्ख बभव्वयं घोर, धारेउ य महत्पणेो ॥ ३३ ॥ सुहाइओं तुम पुत्ता, सुकुमाला सुमज्जिओ । न हुसी पभू तुम पुत्ता, सामण्णमणुपालिया ॥ ३४ ॥ जावज्जीवमविस्सामा, गुणाण तु महन्भरा | गुरु उ लेहिभारु व्व, जो पुत्ता होइ दुव्वहे। ॥ ३५ ॥ आगासे गंगसेाउ व्व पडिसोओ व्वदुत्तरे । बाहाहि सागरा चैव तरियव्वा गुणेोदही ॥ ३६ ॥ वालुयाकवला चेव, निरस्साए उस जमे । असिधारागमणं चेव, दुक्कर चरिउ तवेा ॥ ३७ ॥ अही वेगंतदिट्टीए, चरिते पुत्त दुक्करे ।
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जवा लोहमया चैव चावेयव्वा सुदुक्कर ॥ ३८ ॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउ होइ सुदुक्करा । तहा दुक्कर करेउ जे, तारुण्णे समणत्तणं ॥ ३९ ॥ जहा दुक्खवं भरेउ जे, होइ वायरस कत्था । तहा दुक्ख करेउ जे, कीवेणं समणत्तणं ॥ ४० ॥