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________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं १९) सव्वसंगविनिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए ॥ ५४ ॥ त्ति बेमि ॥ इति संजइज्ज णाम अट्ठारहम अझयणं समत्तं ॥ १८ ॥ ॥ मियापुत्तीयं एगूणवीसइम अज्झयणं ।। सुग्गीवे नयरे रम्मे, काणणुज्जाणसाहिए । राया बलभदि त्ति, मिया तस्सग्गमाहिसी ॥ १ ॥ सेसिं पुत्त बलसिरि, मियापुत्ते त्ति विस्सुए। अम्मापिऊण दइए, जुवराया दमोसरे ॥ २ ॥ नंदणे सो उ पासाए. कीलए सह इथिहिं । देवे दोगुदगे चेव, निच्च मुइयमाणसो ॥ ३ ॥ मणिरयणकोट्टिमतले, पासायालायणठ्ठिओ । आलाएइ नगरस्स, चउक्कत्तियचच्चरे ॥ ४ ॥ अह तत्थ अइच्छतं, पासई समणसंजयं ।। तवनियमसंजमधरं, सील गुणआगरं ॥ ५ ॥ तं देहई मियापुत्ते, दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरिस रूवं, दिद्वपुव्वं मए पुरा ॥ ६ ॥ साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि साहणे । ' मोहंगयस्स संतस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥ ७ ॥ जाईसरणे समुप्पन्न, मियापुत्ते महिडिए । .. सरई पोराणिय जाई, सामण्णं च पुरा फयं ॥ ८ ॥
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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