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________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं ३६) भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई य, एक्कका ऽणेगहा भवे ॥ १८१ ॥ लाएगदेसे ते सव्वे, न सब्वत्थ वियाहिया | 3 तो कालविभाग, चउविहा ते वियाहिया ।। ८२ ।। संतइ पप्प नाईया, अपज्जबसिया वि य । 1 ' ठिs पहुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ ८३ ॥ पलिओ माइ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई थलयराणं, अतामुहुत्तं जहन्निया ॥ ८४ ॥ पुव्वक डिपुहुत्तेण अमुत्त' जहन्निया । कायठिई थलयराणं, अंतरं तेसिमं भवे ॥ ८५ ॥ कालमणंतमुकोस, अमुहुत्त जहन्नगं । विजढ़म्मि सए काए, थलयराणं तु अंतरं ॥ ८६ ॥ चम्मे उ लामपक्खीया, तइया समुग्गपक्खिया । बिययपक्खी य बोधव्बा, पक्खिणा य चउब्विहा ॥ ८७ ।। १७५ 99 लागेगदेसे ते सव्वे, न सब्वत्थ वियाहिया | इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥ ८८ ॥ संत पप्प नाईआ, अपज्जवसिया विय । ठिइ' पहुच साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ ८९ ॥ पलिओमस्न भागो, असंखेज्जइमेो भवे । आउठिई वहयराणं, अतामुहुत्त जहन्निया ।। ९० ।। असंखभाग पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया | पुव्वकाडीपुहुत्तणं, अतो मुहुत्त जहनिया ॥। १९१ ॥
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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