________________
१२७
उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २९)
कायगुत्तयाए णं भंते जीवे किं जणयइ ? का० संवर जणयइ, संवरेण कायगुत्ते पुणे पावासवनिराह करेइ ।। ५५ ।। मणसमाहारणयाए णं भते जीवे किं जगयई ? म० एगग्ग जणयई, एगग्ग जणइत्ता नाणपज्जवे जणयई नाणपज्जवे जणइत्ता समत्त विसोहेई मिच्छत्तं च
निज्जरेइ ।। ५६ ।। वयसमाहारणयाए भंते जीवे किं जणयहूँ ?
व' वयसामहारणदंसणपज्जवे विसाहेइ. वयसाहारणदंसणपज्जवे विसाहित्ता सुलह बोहियत्त निव्वत्तेइ, दुल्लहबाहियत्त' निज्जरेइ ॥ ५७ ॥
कायसमाहारणया णं भंते जीवे किं जणयइ ? का ० चरित्पज्जबे विसोहेइ, चरित्तपज्जवे विसेोहित्ता अहक्खायचरित' विसाहेइ, अहक्खायचरित्त विसेोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तओं पच्छा सिज्झइ बुज्झइ, मच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणभंत करेइ ।। ५८ ।। नाणसंपन्नयाए णं भंते जीवे किं जणयइ ? ना० जीवे सदभावाहिगमं जणयइ नाणस पन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सइ. जहा सुई ससुत्ता न विणस्सइ तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ, नाणविणयतवचरितजेागे संपाउणइ ससमयपर समयविसार ए य असं घायणिज्जे भवइ ।। ५९ ।।